पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४१६

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| सत्यार्थप्रकाशः ।। हैं ।। २ ।। ( जिज्ञासु ) ठीक है तुम्हारी भीतर की लीला बाहर गई तुमने जितना यह पाखण्ड खड़ा किया है वह सब अपने सुख के लिये किया है परन्तु इसमें जगत् का नाश होता है क्योंकि जैसा सत्यापदेश से संसार को लाभ पहुंचता है वैसी ही असत्योपदेश से हानि होती है । जब तुमको धन का ही प्रयोजन था तो नौकरी और व्यापारादि कर्म करके धन को इकट्ठा क्यों नहीं कर लेते हो ? ( मतवाले ) उसमें परिश्रम अधिक और हानि भी होजाती है परन्तु इस इमारी लीला में हानि के भी नहीं होती किन्तु सर्वदा लाभ ही लाभ होता है देखो' तुलसीदल डाल के चरणामृत दे, कठी वांध देते चेला मूडने से जन्मभर को पशुवत् होजाता है। फिर चाहैं जैसे चलाये चल सकता है । ( जिज्ञासु ) ये लोग तुमको बहुत सा धन किसलिये देते हैं ? ( मतवाले ) धर्म स्वर्ग और मुक्ति के अर्थ । ( जिज्ञासु ) जब तुम ही मुक्त नहीं और न मुक्ति का स्वरूप वा साधन जानते हो तो तुम्हारी सेवा करनेवालों को क्या मिलेगा ? ( मतवाले) क्या इस लोक में मिलता है ? नईं किन्तु | मरकर पश्चात् परलोक में मिलता है जितना ये लोग हमको देते हैं और सेवा करते हैं वह सव इन लोगों को परलोक में मिल जाता है ( जिज्ञासु ) इनको तो दिया हुआ मिल जाता है या नहीं, तुम लनेवाले को क्या मिलेगा ? नरक वा अन्य कुछ १ ( मतवाल ) हम भजन करा करते हैं इसका सुख हम को मिलेगा । ( जिज्ञासु ) तुम्हारा भजन तो का ही के लिये है वे सव टके यही पडे रहेंगे और जिस मासपिण्ड को यहा पालते हो वह भी भस्म होकर यहीं रह जायगा, जो तुम परमेश्वर का भजन करते होते तो तुम्हारा आत्मा भी पवित्र होता । ( मतवाले ) क्या हम अशुद्ध हैं ? ( जिज्ञासु ) भीतर के बड़े मैल हो। ( मतवाले ) तुमने कैसे जाना ? ( जिज्ञासु ) तुम्हारे चाल चलन व्यवहार से ( मतवाले ) महात्माओं का व्यवहार हाथी के दांत के समान होता है, जैसे हाथी के दात खाने के भिन्न और दिखलाने के भिन्न होते हैं वैसे ही भीतर से हम पावन्न हैं और बाहर से लीलामात्र करते हैं । ( जिज्ञासु ) जो तुम भीतर से शुद्ध होते तो तुम्हारे बाहर के काम भी शुद्व होते इसलिये भीतर भी मैले हो । ( मतवाले ) हम चाहे जैसे हों परन्तु हमारे चेले तो अच्छे हैं । ( जिज्ञासु ) जैसे तुम गुरु वैसे तुम्हारे चेले भी होंगे । | १ मतवाले ) एक मत कभी नहीं हो सकता क्योंकि मनुस्यों के गुण, कर्म स्वभाव । भिन्न भिन्न हैं। ( जिज्ञासु ) जो बाल्यावस्था में एकसी शिक्षा हो सत्यभापणादिं धर्म को ग्रहण और मिथ्याभाषणादि अधर्म का त्याग कर तो एकमत अवश्य हा