पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४५

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ce४९९८६ '***- 3 SAQ3 से -22222 A39593 , PM) ' कई य तृतीयसमुल्लासारम्भः ॥ गए। । अथSध्ययनाध्यापनविधेि व्याख्यास्यामः ॥ se e ठ - अब तीसरे समुल्लास में पढ़ने पढ़ाने का प्रकार लिखते हैं । सन्तानों को उत्तम ? विद्या, शिक्षागुणकर्म और स्वभावरूप आभूषणों का धारण कराना माता, पिता, आचार्य और सम्बन्धियों का मुख्यक में है । सोनेचांदी, साणिक, मोती मू आदि रनों से युक्त आभूपर्टी के धारण कराने से मनुष्य का आत्मा सुभूषित कभी नहीं हो सकता । क्योंकि आभूषणों के धारण करने से केवल देशाभिमान, विषयासक्ति और चार आदि का भय तथा मृत्यु का भी सम्भव है । संसार से देखने ? में आता है कि आभूषणों के योग से बालानिकों का मृत्यु दुष्टों के हाथ से होता है। विद्याविलासमनसो धूतशील शिक्षा, सस्यत्रता रहतमानमलापहारः । लेसारदुःखदलनेन सुभूषिता ये, धन्या नरा विहितकर्मपरोपकाराः ॥ - १ जिन पुरे का न विद्या के बिलास में तत्पर रहता, सुन्दर शीलस्खभाव युक्क, सत्यभापणदि नियम पालनयुक्त, जो अभिमान और अपवित्रता से रहित, अन्य को मलीनता के नाशक, सत्योपदेश, विद्यादान से संसारी जनों के दु:खों के | दूर करने से सुभूपत, वेदविहित कर्मी से पराये उपकार करने में रहते हैं वे नर और नारी वन्य हैं। इसलिये आठ वर्ष के हों तभी लड़कों को लड़कों की और लडकियों को लडकियों की पाठशाला में भेज दर्ष 1 जो अध्यापक पुरुष वा को । टुटाचारी ही उनसे शिक्षा न दिलावें, किन्तु जो पूर्ण विद्यायुक धार्मिक हों वे ही ! } हैं पढ़ाने और शिक्षा देने योग्य . 1 द्विज अपने घर में लड़कों का यज्ञोपवीत आर कन्याओं का भी यथायोग्य संस्कार करके ग्रथोक आचार्य कुल अथत अपनी २ पाठशाला में भर्भ दें, विद्या पढ़ने का स्थान एकान्त देश में होना चाहिये और