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अनुभूमिका।।

है। मनुष्य का आत्मा यथायोग्य सत्यासत्य के निर्णय करने का सामथ्र्य रखता है जितना अपना पाठित वा श्रुत है उतना निश्चय कर सकता है यदि एक मतवाले दूसरे मतवाले के विषयों को जानें और अन्य न जानें तो यथावत् संवाद नहीं हो सकता किन्तु अज्ञानी किसी भ्रमरूप बाड़े में घिर जाते हैं ऐसा न हो इसलिये इस ग्रन्थ में प्रचरित सब मत का विषय थोड़ा २ लिखा है इतने ही से शेष विषयों में अनुमान कर सकता है कि वे सचे हैं व झूठे, जो २ सर्वमान्य सत्य विषय हैं वे तो सब में एकसे हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। अथवा एक स्वचा और दूसरा झूठ. हो तो भी कुछ थोडासा विवाद चलता है। यदि वादीप्रतिवादी सत्यासत्य निश्चय के लिये वादप्रतिवाद करें तो अवश्य निश्चय होजाय । अब मैं इस १३ वें समुल्लास में ईसाईमत विषयक थोड़ासा लिखकर सबके सम्मुख स्थापित करता हूं विचारिये । कि कैसा है ॥ साँचा:C''' | ‘hि jn


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