पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५२३

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नत्रयोदृशसगुलासः ॥ ५२ १ ६१-तब आत्मा यीशुको जड़ल में गया कि शैतान से उसकी परीक्षा कीजाय वह चालीस दिन और चालीस रात उपवास करके पीछे भूखा हुआ तब परीक्षा करनेहरे ने कहा कि जो तू ईश्वर का पुत्र है तो कह कि, ये रोटियां बनजाने ॥ ई० पट्धर प० ४ ' आr० १, २ । ३ समीक्षक-इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि इसमइयों का ईश्वर सर्वज्ञ नहीं कि जो सर्वथा होता तो उसकी परीक्षा शैतान से क्यों करता जान लेता भला एंव किसी ईसाई को आजकल चालीस रात चालीस दिन भूखा रक्खें ता कभ वह सकेगा १ और इससे यह भी सिद्ध हुआ कि न व ईश्वर का बेटा और न कुछ उसमें करमात अर्थात् सिद्धि थी नहीं तो शैतान के सामने पत्थर की रोटियां दी न बना देता है और आप भूख क्यों रहत। १ और सिद्धान्त यह है कि जो परमेश्वर ने पत्थर बनाये हैं उनको रोटी कोई भी नहीं बना सकता और ईश्वर भी पूर्वीकृत नियम को उलटा नहीं कर क्योंकि वह सर्व और सब काम विना r सका उस भूल चूक के ई ॥ ६१ ॥ ६२-उसने उनसे कहा मेरे पीछे आइओो मैं तुमको मनुष्य के संचवे बनाऊंगा वे तुरन्स जालों को छोड़ के उसके पीछे हो लिये 7 इ० प० ४ 1 आ० १९।२० । ११ समीक्षक-विदित होता है कि इसी पाप अर्थात् जो तौरेत में देश आज्ञाओं में लिखा है कि ( सन्तान लोग अपने माता पिता की सेवा और म।न्य करें जि से उनकी उमर बढ़े तो ) ईसा ने न् अपने माता पितरों की सेवा की और दूसरे को भी माता पिता की सेवा से छुछुड़ाये इसी अपराध से चिरंजीवी न रहे और यह भी विदिख हुआा कि ईमाने मनुष्यों के फंसाने के लिये एक मत चलाया है कि जाल में मच्छी के समान मनुष्यों को स्ख मत में rकर अपना प्रयोजन साधे जब ईसा ही ऐसा था तो आजकल के पादरी लोग अपने जाल में मर्दों को दें वो क्या अtये हैं कोंकि जैजे से यही २ और बहुत मच्छियों को जाल में खानेवाले की प्रतिष्ठा और जीवि ा अच्छी होती है ऐसे ही जो बहुतों को अपने मत में है। है e । भी थे। ड को अधिक प्रतिष्ठा ऑर्डर जंiका होती है । इसीसे ये लोग जिन्न वेद श शव को न पढ़ में न उन विचार भस ‘यों को अपने जाल में ' के म् । के मा बाप कुटुम्ब आदि से पृथ कर देते हैं इस सप विद्वान ो अचिन है कि स्वय इनके भ्रम ज।ल डे पर अन्य आपने भोले ६दयों के थाने में पर रद t1 ६२ !