पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५३६

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५३४ खस्याथ: । २३ । २४ । २६ 1 २७ से २८ । २९ । ३० 1 ३ १ ! ३३ । ३४ । ३७ व २८ । ३९ ' ४० । ४१ । ४२ । ४३ । ४४ । ४५ ! ४ ६ । ४७ । ४८। ४९। ५० ॥ ' खमक्षिक-सवेथा यीशु के साथ उन दुष्टों ने बुरा काम किया परन्तु यीशु का भी दोष है क्योकि ईश्वर का न कोई पुत्र न वह किसी का बाप है क्योंकि जो वह किसी का बाप होवे तो किस्वीका श्वसुर श्याला खम्बन्धी आदि भी होवे और जब अध्यक्ष 3 ने पूछा था तब जैसा सच था उत्तर देना था ौर यह ठीक है कि जो २ आश्चय्यें कर्म प्रथम किये हुए जच होते तो आव भी कूश पर से उतर कर सब को अपने शिष्य बना लेता और जो बहू ईश्वर का पुत्र होता तो ईश्वर भी उख को बचा लेता जो वह त्रिकालदर्श होता तो सिर्फ में पित्त मिले हुए को चीख के क्र्यों छोड़ता वह पांले ही से जानता होता और जो वह करामाती होता तो पुकार २ के प्राण क्या यागता १ ईसचे जानना चाहिये कि चाहे कोई कितनी ही चतुराई करे परन्तु अन्त में सच सच और झूठ झूठ होजाता है इससे यह भी सिद्ध हुआ कि यीशु एक उस समय के जहुली मनुष्यों में कुछ अच्छा था न वह करामाती, न ईश्वर का पुत्र और न ? विद्वान् था क्योंकि जो ऐसा होता तो ऐसा वह दुःख क् भोगता १ । ८७ ॥ ८८और देखो बड़ भूईडोल कि परमेश्वर का दूत हुआ एक उतरा और आके खबर के द्वार पर से पत्थर लुढ़का के उस पर बैठा । वह यहां नहीं है जैसे उसने कहा , वैसे जी उठा है. । जब वे उस शियों को खंदेश जाती थी देखो यीशु उन खें आमिता कह कल्याण हो और उन्होंने निकट अ उसके पांव पकड उपा के प्रणाम किया। तब यीश ने कहा मत डरो जावड़े सेरे भाइयों से कहदो कि वे गला को जावे और वा वे मु देखेंगे । ग्यारह शिष गालीको उद्ध परवत पर राय यीशु ने उन्हें बताया था और उन्ने उसे देखके पको प्रणाम किया पर एक नों को सन्देह हुआ । यीशुने उन पख आा उनके कद्दा स्वर्ग में और पृथिवी पर सम अधिकार मु को दिया गया है। और देखो में जगत् के अन्त ल जब दिन उन्हेंIR चुंग हूं। ई० म ० प० २८। आ० २१ ६। द । १० । १६ । १७ । १८.२० कित समीक्षक-यह बात भी मानने योग्य है क्योंकि सर्जिक्रम और विद्यात्रिरुद्ध हैं, थम ३र के पास दू का होना उन को जहा ता मेजना ऊपर से उतरता क्या । सीतit आने मन ईर को बना दिया ? क्या उसी श दीरए से खर्च की गय। द्टी के