पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५४८

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५४६ स्य कIt: M। १२१-और देखो स्वर्ग में साक्षी के चेयू का मन्दिर खोला गया ॥ यो० श्र ० प० १५ । आ० ५ ! समीक्षकजो ईसाइयों का ईश्वर सर्व होता तो साक्षियों का क्या काम ! क्योंकि वां स्वयं सब कुछ जानता होता इससे सर्वथा यही निश्चय होता है कि इस का ईश्वर सर्वज्ञ नहीं क्योंकि मनुयवत् अल्प है वह ईश्वरता का क्या काम कर सकता है ? नईि नहिं नहिं और इसी प्रकरण में दूतों की बढ़ी २ असंभव बातें लिखी हैं उनको सत्य कोई नहीं मान सकता कांत लिखें इसी प्रकरण में सर्वथा। ऐसी ही बातें भी हैं ॥ १२१ ॥ १२२औौर ईश्वर ने उसके कुकों को स्मरण किया है । जैसा तुम उठ ने दिया है जैसा उसको भर देश और उसके क के अनुसार दूना उसे दे देओो ॥ य० म० प ० १८ 1 अ० ५ से ६ । व्य समीक्षक- देखो प्रत्यक्ष ईकाइ का ईश्वर अन्यायकारी है कि न्याय उसiका कहते हैं कि जिसने जैचा वा जितना कर्म किय उसको वै ा और उतना ही फल दन उसे अधिक न्यून देना अन्याय है जो अन्ययकारी की उपासना करते हैं। वे छन्यायकारी क्यों न हों । ५२२ ॥ १२३-—क्योंकि मेन्ने का विवाह आापहुंचा है और उसकी बी ने अपने का दयार किया द : य० ० स० १९ । आ० ७ ॥ समीक्षक-अब सुनिये ! ईसाइयों के स्वरोंमें विवाह भी होते हैं ! क्योंकि इंसा का विवाह ईश्वर ने वह किया, पूछना चाहिये कि उसके श्वसुर साठ शालादि कॉन य। और लड़के वाले कितने हुए १ और वीर्य के नाश होने से बलबुद्धि, पराक्रमअऔ मदि के भी न्यून होने से आबक ईवा ने वहां शरीर त्याग किया होगा क्या उंयोगजन्य पदार्थों का वियोग अवश्य होता है अवयक ईसाइयों ने उसके विश्वास में धोखा खाया और न जाने कबतक धोखे में रहेंगे ॥ १२३ ॥ १२४-- और उसने अजगर को अर्थात् प्राचीन साप को जो दियाबल हैपर 1 वान के पक्षद के उसे इस वर्ष लों बांध रक्खा । और उसको अथा कुण्ड में । में