पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५६

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4 से शिका तयसमुल्लास: !॥ ४३ है औ पुरुष ३० वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचारी रहे तो स्त्री ५७ वर्षजो पुरुष ३६ वर्ष तक रहे तो की १८ वर्ष, जो पुरुष ४० वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचर्य करे तो स्त्री २० वर्षजो पुरुष ४४ वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचर्य करे तो स्त्री २२ वर्षजो पुरुष ४८ वर्ष ब्रह्माचर्य करे तो स्त्री २४ वर्ष पर्यन्त ऋन चर्य सेवन रक्खे अर्थात् ४ ८ वें वर्ष से आगे पुरुष और २४ वें वर्ष से आगे बी को ब्रह्माचर्य न रखना चाहिये, परन्तु यह नियम विवाह करनेवाले पुरुष और स्त्रियों का है और जो विवाह करना ही न चाहैं वे मरण- पर्यन्त प्रह्मचारी रह सकें तो भले ही रहे परन्तु यह काम पूर्ण विद्यावाले जितेन्द्रिय और निर्दोष योंग ली और पुरुष का है । यह बड़ा कठिन काम है रोके जो काम के वग को थाम इन्द्रियों को अपने वश में रखना । नतं व स्वाध्याय, व सय व स्वाध्यायमूचन च । तपश्व स्वाध्यायग्रवचन । व । दमश्च स्वाध्याय'वचने। च। श्मश्च स्वाध्याप्रवचन व 7 अग्नव स्वाध्याय वचन च । अग्निहोत्रय स्वाध्यायप्रवचन च । आतिथ्यश्च स्वाध्या- यमवचन व । मानुष च स्वाध्यायचन व I प्रजा च स्वा ध्यायप्रवचने व । प्रजनश्च स्वाध्यायप्रवचने च ।‘प्रजातिच स्वाध्यायप्रवचने ॥ व 1 यह तैत्तिरीयोपनिषद् प्रप० ७ अनु० ९ का हैं, पढमें पढ़ानेवाल । वचन के नियम हैं । ( ऋतं० ) यथार्थ आचरण से पढ़ें और पढ़ाईं ( सत्यं ० ) सत्याचार { से सय विद्याओं को पट्टे व पढ़ायें ( तप.° ) तपस्वी अर्थात् धर्मानुष्ठान करते हुए | वदiद शात्रों को पढ़ें और पढ़ाबें ( द:० ) बाह्य इन्द्रियों को बुरे आचरों से रोक के पढ़ें और पढ़ाते जा ( शम० ) मन की वृत्ति को सब प्रकर के दोषों से हटा के पढते पढ़ते जायें ( आग्नय:० ) आहवनीयादि अग्नि और विद्युम् आदि को जान के पढ़ते पढ़ाते जायें और (अग्निहोर्न o ) अग्निहोत्र करते हुए पठन और पाठन करें करावें ( आतिथयः ० ) अतिथियों की सेवा करते हुए पढ़ें और पढ़ाबें ( सानुप ० ) मनुष्पसंम्बन्धी यवहारों को यथायोग्य करते हुए पहले पढ़ते रहै ( ज० ) सन्तान