पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५९

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४ ६ सत्यप्रकाश: 15 वेदास्त्यागश्व यज्ञाश्ध नियमाश्व तपसि च । न विशेदृष्टभावस्य सिद् िगच्छान्ति कांॉच ॥ मनु० २ १७ है। जो दुष्टाचारी अजितेन्द्रिय पुरुष है उसके वेद, स्याग, यज्ञ, नियम और तप ' तथा अन्य अच्छे काम कभी सिद्धि को प्राप्त नहीं होते. वेदोपकरण चैव स्वाध्याय व नैयिके । नानुरोधोsस्यनाये होमसेंपू वैव हि ॥ १ ॥ नैत्यिके नास्यनायो ब्रह्मसर्फ़ हि तत्स्मृतम्। ब्रह्माहुतिहुत पुण्यमनध्यायवषट्क्कृतम् ॥ २है॥ | म० २ : १०५ से १०६ ॥ बेट के पढ़ने पढ़ाने सन्योपासनादि पंचायतों के करने और होम मन्त्रों में 3 आनध्यायविषयक अनुरोध ( आप्रह ) नहीं है क्योंकि ॥ १ ॥ नित्य कर्म में अन | ध्याय नहीं होता जैसे श्वास प्रश्वास सदा लिये जाते हैं चन्द्र नहीं किये जा सकते । वैसे नित्यकर्म प्रतिदिन करना चाहिये न किसी दिन छोडना क्योंकि अनध्याय में ! भी अग्निहोत्र।दि उत्तम कर्म किया हुआ पुण्यरूप होता है जैसे झूठ बोलने में सट्टा पाप और सत्य बोलने में व्ा पुण्य होता है वैसे ही बुरे कर्म करने में सट्टा अन- ध्याय और अच्छे कर्म करने में सदा स्वाध्याय ही देखा है । आाभिवादनशीलस्य नियं वृद्धोपसेविनः । } चव तस्य वर्दान्त आयुर्खियायशोवलम् है। मनु० २ 1 १२१ ! } जो सदा सत्र मुशल विद्वान् और वृद्धों की सेत्रा करता है उसकी आयु| 1 कf चार विद्या, और वल ये सदा यढ़ते हैं और जो ऐसा नहीं करते उनके आयु 1 i आदि चारों नहीं चढ़ते ?