पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

होता है उससे स्वार्थी लोग विरोध करने मे तत्पर होकर अनेक प्रकार विघ्न करते हैं । परन्तु “सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था वितत देवयानः” अर्थात् सर्वदा सत्या का विजय और असत्य का पराजय और सत्य ही से विद्वानों का मार्ग विस्तृत होता है, इस दृढ़ निश्चय के आलम्बन से आाप्त लोग परोपकार करने से उदासीन होकर कभी सत्यार्थप्रकाश करने से नहीं हटते । यह बड़ा दृढ़ निश्चय है कि “यत्तदग्रे विषमिव परिणामेऽमृतोपमम्” यह गीता का वचन है इसका अभिप्राय यह है कि जो २ विद्या और धर्मप्राप्ति के कर्म हैं वे प्रथम करने में विष के तुल्य और पश्चात् अमृत के सदृश होते हैं ऐसी बातों को चित्त में धर के मैने इस ग्रन्थ को रचा है । श्रोता वा पाठकगण भी प्रथम प्रेम से देख के इस ग्रन्थ का सत्य २ तात्पर्य जानकर यथेष्ट करें। इसमें यह अभिप्राय रखा गया है कि जो जो सब मतों में सत्य २ बातें हैं वे २ सव में अविरुद्ध होने से उनका स्वीकार करके जो २ मतमतान्तरों से मिथ्या बातें हैं उन २ का खण्डन किया है। इसमें यह भी आभिप्राय रखा है कि जब मतमतान्तरों की गुप्त या प्रकट बुरी बातों का प्रकाश कर विद्वान् आविद्वान् सब साधारण मनुष्यों के सामने रक्खा है, जिससे सब से सब का विचार होकर परस्पर प्रेमी हो के एक सत्य मतस्ध होवे। यद्यपि मैं आर्यावर्त देश में उत्पन्न हुआ और वसता हूं तथापि जैसे इस देश के मतमतान्तरों की झूठी बातों का पक्षपात न कर याथातथ्य प्रकाश करता हूँ, वैसे ही दूसरे देशस्थ वा मत वालों के साथ भी वर्त्तता हूँ। जैसा स्वदेश वालों के साथ मनुष्योन्नति के विषय में वर्त्तता हूँ, वैसा विदेशियों के साथ भी तथा सब सज्जनों को भी वर्त्तना योग्य है क्योंकि मैं भी जो किसी एक का पक्षपाती होता तो जैसे आजकल के स्वमत की स्तुति, मण्डन और प्रचार करते और दूसरे मत की निन्दा, हानि और बन्द करने में तत्पर होते हैं, वैसे मैं भी होता, परन्तु ऐसी बातें मनुष्यपन से बाहर हैं। क्योंकि जैसे पशु बलवान् हो कर निर्बलों को दुःख देते और मार भी डालते हैं। जब मनुष्य शरीर पाके वैसा ही कर्म करते हैं तो वे मनुष्य स्वभावयुक्त नहीं किन्तु पशुवत् हैं। और जो बलवान् होकर निर्बलों की रक्षा करता है वही मनुष्य कहाता है और जो स्वार्थवश होकर परहानिमात्र करता रहता है, वह जानो पशुओं का भी बड़ा भाई है। अब आर्य्यावर्त्तीयों के विषय में विशेष कर ११ ग्यारहवें समुल्लास तक लिखा है।