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कैसे चला आये। बड़े पवित्तर होते हैं यह लोग। तभी तो संसार पूजता है। तभी तो इतना मान है। भर-चमार थोड़े ही हैं। इसी गाँव में बूढ़ा हो गया, मगर मुझे इतनी अकल भी न आई।'

इसलिए जब पंडिताइन आग लेकर निकलीं, तो वह मानो स्वर्ग का वरदान पा गया। दोनों हाथ जोड़कर जमीन पर माथा टेकता हुआ बोला - 'पंडिताइन माता, मुझसे बड़ी भूल हुई कि घर में चला आया। चमार की अकल तो ठहरी। इतने मूरख न होते, तो लात

सद्गति/मुंशी प्रेमचन्द 12