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अकड़ा पड़ा हुआ था। बदहवास होकर भागे और पंडिताइन से बोले - 'दुखिया तो जैसे मर गया।'

पंडिताइन हकबकाकर बोली - 'वह तो अभी लकड़ी चीर रहा था न?'

पंडित - 'हाँ, लकड़ी चीरते-चीरते मर गया। अब क्या होगा?'

पंडिताइन ने शान्त होकर कहा - 'होगा क्या, चमरौने में कहला भेजो कि मुर्दा उठा ले जायँ।'

एक क्षण में गाँव भर में खबर हो गई। पूरे में ब्राह्मनों की ही बस्ती थी, केवल एक घर गोंड का था। लोगों ने उधर का रास्ता छोड़ दिया। कुएँ का रास्ता उधर से ही था, पानी कैसे भरा जाय ! चमार की लाश के पास से होकर पानी भरने कौन जाय ! एक बुढ़िया ने पंडितजी से कहा - 'अब मुर्दा फेंकवाते क्यों नहीं। कोई गाँव में पानी पीयेगा या नहीं !'

इधर गोंड़ ने चमरौने में जाकर सबसे कह दिया - ‘खबरदार, मुर्दा उठाने मत जाना। अभी पुलिस की तहकीकात होगी। दिल्लगी[१] है कि एक गरीब की जान ले ली। पंडितजी होंगे, तो अपने घर के होंगे। लाश उठाओगे तो तुम भी पकड़े जाओगे।'

इसके बाद ही पंडितजी पहुंचे। पर चमरौने का कोई आदमी लाश उठा लाने को तैयार न हुआ। हाँ, दुखी की स्त्री और कन्या,

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सद्गति/मुंशी प्रेमचन्द20
  1. दिल्लगी - मज़ाक