पृष्ठ:सद्गति.pdf/२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

पंडिताइन - ‘इन सबों को घिन भी नहीं लगती।'

पंडित - 'भ्रष्ट हैं सब।'

रात तो किसी तरह कटी। मगर सबेरे भी कोई चमार न

सद्गति/मुंशी प्रेमचन्द23