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दो शब्द

प्रेमचन्द आज़ादी के आन्दोलन के दौर के लेखक हैं। ब्रिटिश साम्राज्यवाद से लोहा लेने के लिए उस दौर में यह महसूस किया गया कि अपने समाज में फैली बुराइयों को दूर किया जाए, क्योंकि अपने समाज के अन्यायमूलक ढाँचों की निर्मम समीक्षा करते हुए ही आज़ादी और न्याय की लड़ाई लड़ी जा सकती है। समाज सुधार, नवजागरण या नए शिक्षित जागरूक समाज की तस्वीर बनाने के लिए एक आत्मसंघर्ष ज़रूरी है। हमें अपने समाज की कमजोरियों को दूर करना ही होगा।

इसी आत्मसंघर्ष से गुज़रते हुए प्रेमचन्द ने सद्गति जैसी कहानियाँ लिखी हैं। ये कहानियाँ दुनिया की बेहतरीन कहानियों में बहुत ऊँचा स्थान रखती हैं। 'सद्गति' पर सत्यजित रे जैसे महान फिल्म निर्देशक फिल्म बना चुके हैं। फिल्म में दुखी चमार की भूमिका ओमपुरी ने और झुरिया की भूमिका स्मिता पाटिल ने निभाई थी।