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सप्तसरोज
४२
 


रामाने उन्हें बहुत उदास और मलिनमुख देखा। उसने बार-बार कहा था कि बडे इन्जिनियर सानसामाको इनाम दो, हेड क्लर्क, की दावत करो, मगर सरदार साहब ने उसकी बात न मानी थी।इसलिये जब उसने सुना कि उनका दरजा घटा और बदली भी हुई तब उसने बडी निर्दयता से अपने व्यंग-वाण चलाये। मगर इस वक्त उन्हे उदास देखकर उससे ने रहा गया। बोली, क्यों इतने उदास हो? सरदार साहबने उत्तर दिया, क्या करू, हँसू? रामाने गम्भीर स्वर से कहा, हसना ही चाहिये। रोये तो वह जिसने कौडियोंपर अपनी आत्मा भ्रष्ट की हो-जिसने रुपयोंपर अपना धर्म बेचा हो। यह बुराई का दण्ड नहीं है। यह भलाई और जनता का दण्ड है। इसे सानन्द झेलना चाहिये।

यह कहकर उसने पतिकी ओर देखा तो नेत्रों में सच्चा अनुराग भरा हुआ दिखाई दिया । सरदार साहबने भी उसकी ओर स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखा। उनकी हृदयेश्वरीका मुखारविन्द सच्चे आमोदसे विकसित था। उसे गले लगाकर वे बोले, रामा! मुझे तुम्हारी ही सहानुभूति की जरूरत थी अब मैं इस दण्ड को सहर्ष सहूँगा।