खाला—अपनी विपद तो सबके आगे रो आई हूँ आने न आने का अख्तियार उनको है।
अलगू—यों आने को मैं आ जाऊगा, मगर पचायतमे मुंह न खोलूँगा।
खाला—क्यों बेटा?
अलगू—अब इसका क्या जवाब दूं? अपनी खुशी जुम्मन मेरे पुराने मित्र है। उनसे बिगाड नहीं कर सकता।
खाला—बेटा, क्या बिगाढके डर से ईमानकी बात न कहोगे?
हमारे सोये हुए धर्म-ज्ञानकी सारी सम्पत्ति लुट जाय तो उसे खबर नहीं होता, परन्तु ललकार सुनकर वह सचेत हो जाता है। फिर उसे कोई जीत नहीं सकता। अलगू इस सवालका कोई उत्तर न दे सके। पर उनके हृदय मे यह शब्द गूंंज रहे थे।
'क्या बिगाड़ के भय से ईमान की बात न कहोगे?'
४
सन्ध्या समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी। शेख जुम्मन ने पहले ही से फर्श बिछा रक्खा था। उन्होंने पान, इलायची, हुक्के, तम्बाकू आदिका प्रबन्ध भी किया था। हां, वे स्वयं अलवत्ता अलगू चौधरी के साथ जग दूर बैठे हुए थे। जब कोई पंचायतमें आ जाता था तब दवे हुए सलामसे उसका शुभागमन करते थे। जब सूर्य अस्त हो गया और चिड़ियोंकी कलरव युक्त पंचायत पेड़ो पर बैठी तब यहां भी पंचायत आरम्भ हुई। फर्शकी एक-एक अंगुल जमीन भर गई, पर अधिकांश दर्शक ही थे। निमन्त्रित महाशयों में से केवल वही लोग पधारे थे जिन्हें जुम्मन से अपनी