जुम्मनको इस समय सदस्यों में विशेषकर वही लोग दीख पड़े जिनसे किसी न किसी कारण उनका वैमनस्य था। जुम्मन बोले, पञ्चका हुक्म अल्लाह का हुक्म है। खालाजान जिसे चाहे बदें, मुझे कोई उज्र नहीं।
खालाने चिल्लाकर कहा, अरे अल्लाह के बन्दे। पञ्चोके नाम क्यों नहीं बता देता? कुछ मुझे भी तो मालूम हो।
जुम्मनने क्रोध से कहा, अब इस वक्त मेरा मुह न खुलावाओ। तुम्हारी बन पडी है, जिसे चाहो पञ्च बदो।
खालाजान जुम्मनके आक्षेप को समझ गई। वह बोली, बेटा! खुदासे डरो। पञ्च न किसीके दोस्त होते है न किसी के दुश्मन। कैसी बात कहते हो? और तुम्हारा किसी पर विश्वास न हो तो जाने दो,अलगू चौधरी को तो मानते हो? लो, मै उन्हींको सरपंञ्च बदती हूँ।
जुम्मन शेख आनन्दसे फूल उठे,परन्तु भावों को छिपाकर वोले अलगू चौधरी ही सही। मेरे लिये जैसे रामधन मिश्र वैसे अलगू।
अलगू इस झमेले मे फँसना नहीं चाहते थे। वे कन्नी काटने लगे। बोले, खाला। तुम जानती हो कि मेरी जुम्मन से गाढ़ी दोस्ती हैं।
खालाने गम्भीर स्वर मे कहा, बेटा! दोस्ती के लिये कोई अपना ईमान नहीं बेचता। पञ्चके दिल में खुदा बसता है। पञ्चों के मुहमे जो बात निकलती है वह खुदा की तरफसे निकलती है। अलगू चौधरी सरपंच हुए। रामधन मिश्र और जुम्मन के दूसरे विरोधियों ने बुढिया को मन में बहुत कोसा।