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पंच परमेश्वर
 


फलियों पर उनका स्वत्व है या नहीं और जबतक यह प्रश्न हल न हो जाय तबतक वे रखवालेकी पुकारपर अपनी अप्रसन्नता प्रकट करना आवश्यक समझते थे। पेड़की डालियों पर बैठी शुकमंडली में यह प्रश्न छिड़ा हुआ था कि मनुष्य को उन्हें बेमुरौवतकहने का क्या अधिकार है, जब उसे स्वयं अपने मित्रों को दगा देने में भी संकोच नहीं होता।

पंचायत बैठ गई तो रामधन मिश्र ने कहा, अब देरी क्यों? पंचोंका चुनाव हो जाना चाहिये। बोलो चौधरी, किस किसको पंच बदते हो?

अलगू ने दीनभाव से कहा, समझू साहु ही चुन लें।

समझू खड़े हुए और कड़क कर बोले, मेरी ओर से जुम्मन शेख।

जुम्मन का नाम सुनते ही अलगू चौधरी का कलेजा धक धक करने लगा, मानो किसीने अचानक थप्पड़ मार दिया हो। रामधन अलगू के मित्र थे। वे बात को ताड़ गये। पूछा, क्यों चौधरी तुम्हें कोई उज्र तो नहीं?

चौधरी ने निराश होकर कहा, नहीं, मुझे क्या उज्र होगा?

X X X X

अपने उत्तरदायित्त्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधार होता है। जब हम राह भूलकर भटकने लगते हैं तब यही ज्ञान हमारा विश्वसनीय पथ दर्शक बन जाता है।

पत्र-सम्पादक अपनी शान्ति कुटीर मे बैठा हुआ कितनी धृष्टता और स्वतन्त्रता के साथ अपनी प्रबल लेखनी से मन्त्रि-