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आज हम "सप्तसरोज" का सोलहवां संस्करण हिन्दी संसारके सम्मुख रख रहे हैं। हमें यह कहते हर्ष होता है कि हिंदी-प्रेमी पाठकोंने इसकी कहानियाँ बहुत पसन्द कीं। पत्र पत्रिकाओंके सम्पादक और अन्य हिन्दीके विद्वानोंने भी इसकी बहुत सराहना की। अंगरेजी 'माडर्न रिव्यू' और 'लीडर' सरीखे पत्रोंने भी तारीफ करनेमें कसर नहीं की, लेकिन इस पुस्तकपर हमें सबसे अधिक महत्वकी सम्मति——निष्पक्ष सम्मति——श्रीमान् शरच्चन्द्र चट्टोपाध्याय महोदयसे मिली है। उस सम्मतिपर सभी हिन्दी-प्रेमियोंको गर्व होना चाहिये।
हमें इस सत्यके स्वीकार करनेमें कोई आपत्ति न होनी चाहिये कि हिन्दीमें अधिकांश उपन्यास और गल्पकी पुस्तके बंगभाषाकी जूठन हैं। हिन्दीके गल्प-ससारमें कोई ऐसी महत्वशाली रचना नहीं थी, जिसे बंगभाषाका एक इतना महान् और प्रतिभाशाली विद्वान सराह सके। अब हम थोड़ेमें आपको शरत् बाबूका परिचय कराकर सप्तसरोजपर उनकी सम्मतिका भावार्थ सुना देते हैं। इस समय शरत् बाबू बंगभाषाके उपन्यास और गल्प संसारमें सर्वश्रेष्ठ गिने जाते हैं। सर जगदीशचन्द्र बोस, और सर रवीन्द्रनाथ ठाकुर सरीखे विद्वानोंने आपकी रचनाओं की असीम प्रशंसा की है। अबतक वङ्गभाषामें आपकी कितनी ही पुस्तकें निकली हैं और निरन्तर निकलती जा रही हैं। आपके ग्रन्थोंके पाठकोंकी संख्या बहुत अधिक है।