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पृष्ठ:सप्तसरोज.djvu/७

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अब आपकी सम्मतिका भावार्थ सुनिये——

"गल्पें सचमुच बहुत उत्तम और भावपूर्ण हैं। रवीन्द्र बाबू के साथ इनकी तुलना करना अन्याय और अनुचित साहस है, पर और कोई भी बँगला लेखक इतनी अच्छी गल्पें लिख सकता है या नहीं, इसमें सन्देह है।"

एक सम्मति और उल्लेख-योग्य जान पडती है। अनेक पूर्वीय भाषाओंके धुरन्धर विद्वान् मि॰ आर॰पी॰ ड्यूहर्स्ट एम॰ए॰, एफ॰आर॰जी॰एस॰, आई॰सी॰एस॰, डिस्ट्रिक्ट सेशन्स जज, गोंडा लिखते हैं——

"प्रेमचन्दकी कितनी ही कहानियाँ पढ़कर मैंने विशेष आनन्द प्राप्त किया है। अवश्य ही उनमें कहानियाँ लिखनेकी ईश्वरीय शक्ति है।"

हिन्दीके विद्वानोंकी प्रशंसापूर्ण सम्मतियोंका उल्लेख हम यहां इसलिये नहीं करना चाहते कि उनके तो यह घरकी चोरी है, उनकी की हुई प्रशंसामें दूसरोंको पक्षपातकी गन्ध आ सकती है।

हमें यू॰ पी॰ की टेक्स्ट-बुक कमिटीको भी धन्यवाद देना चाहिये कि उसने इस पुस्तकको पुरस्कारके लिये नियत कर इसका गौरव बढ़ाया। आशा है कि अन्य प्रान्तकी टेक्स्ट बुक कमिटियां तथा हिन्दी प्रेमीगण सप्तसरोजके इस सोलहवें संस्करणका यथोचित आदर कर हमें कृतार्थ करेंगे।

——प्रकाशक