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सप्तसरोज
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इज्जत धूल में मिल जायगी। हमारा अपमान करनेसे आपके क्या हाथ आवेगा। हम किसी तरह आपसे बाहर थोडे ही हैं?

वंशीधरने कठोर स्वर में कहा, हम ऐसी बाते नहीं सुनना चाहते।

अलोपीदीन ने जिस सहारेको चट्टान समझ रखा था, वह पैरों के नीचे से खिसका हुआ मालूम हुआ। स्वाभिमान और धन ऐश्वर्यको कडी चोट लगी। किन्तु अभीतक धन की, सांख्यिक शक्ति का पूरा भरोसा था। अपने मुख्तारसे बोले, लालाजी, एक हजार का नोट बाबू साहबकी भेट करो, आप इस समय भूखे सिंह हो रहे हैं।

वंशीधरने गरम होकर कहा, एक हजार नहीं, एक लाख भी मुझे सच्चे मार्ग से नहीं हटा सकते।

धर्म की इस बुद्धिहीन धृष्टता और देव-दुर्लभ त्यागपर धन,बहुत झुझलाया। अब दोनों शक्तियों में संग्राम होने लगा। धनके उछल उछलकर आक्रमण करने आरम्भ किये। एक से पाँँच, पाँच से दस, दस से पन्द्रह और पन्द्रह से बीस हजार तक नौबत पहुँची किन्तु धर्म अलौकिक वीरताके साथ इस बहुसख्यक सेना के सम्मुख अकेला पर्वत की भाँति अटल, अविचलित खड़ा था।

अलोपीदीन निराश होकर बोले,अब इससे अधिक मेरा साहस नहीं। आगे आपको अधिकार है।

वंशीधरने अपने जमादारको ललकारा। बदलू सिंह मन मे दारोगाजी को गालियां देता हुआ पण्डित अलोपीदीनकी ओर बढ़ा। पण्डित जी घबड़ाकर दो-तीन कदम पीछे हट गये। अत्यन्त