डिप्टी मैजिस्ट्रेटने अपनी तजवीन में लिखा, पण्डित अलोपीदीनके विरुद्ध दिये गये प्रमाण निर्मूल और भ्रमात्मक हैं। वह एक बड़े भारी आदमी है। यह बात कल्पनासे बाहर है कि उन्होंने थोडे लाभके लिये ऐसा दुस्साहस किया हो । यद्यपि नमक के दारोगा मुंशी वंशीधर का अधिक दोष नहीं है, लेकिन यह बडे खेदकी बात है कि उनकी उदण्डता और अविचारके कारण एक भलेमानस को कष्ट झेलना पड़ा। हम प्रसन्न हैं कि वह अपने काममें सजग और सचेत रहता है, किन्तु नमक के मुहकमेकी बढ़ी हुई नमकहलानी ने उसके विवेक और बुद्धिको भ्रष्ट कर दिया। भविष्य मे उसे होशियार रहना चाहिये।
वकीलों ने यह फैसला सुना और उछल पड़े। पण्डित अलोपीदीन मुस्कुराते हुए बाहर निकले। स्वजन वान्धवोंने रुपयोंकी लूट की। उदारताका सागर उमड़ पडा। उसकी लहरोंने अदालत की नींव तक हिला दी। जब वंशीधर बाहर निकले तो चारों ओर उनके ऊपर व्यंग्यवाणोंकी वर्षा होने लगी। चपरासियोंने झुक-झुककर सलाम किये। किन्तु इस समय एक-एक कटुवाक्य एक-एक संकेत उनकी गर्वाग्नि को प्रज्वलित कर रहा था। कदाचित इस मुकदमेमें सफल होकर वह इस तरह अकड़ते हुए न चलते। आज उन्हें संसारका एक खेदजनक विचित्र अनुभव हुआ। न्याय और विद्वता, लम्बी-चौड़ी उपाधियां, बड़ी बड़ी दाढियां और ढोले चोगे एक भी सच्चे आदर के पात्र नहीं है।
वंशीधर ने धन से वैर मोल लिया था, उसका मूल्य चुकाना अनिवार्य था। कठिनता से एक सप्ताह बीता होगा कि मुअत्तली-