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समर-यात्रा
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महात्मा और उनके चेले कि दीनों का दुःख समझते हैं, उनके उद्धार का जतम करते हैं । और तो सभी हमें पीसकर हमारा रक्त निकालना जानते हैं।

यात्रियों के चेहरे चमक उठे। हृदय खिल उठे। प्रेम में डूबी हुई ध्वनि निकली-

'एक दिन वह था कि पारस थी यहाँ की सरज़मीन'

एक दिन यह है कि यों बे दस्तोपा कोई नहीं।'

( ३ )

कोदई के द्वार पर मशालें जल रही थीं। कई गांवों के आदमी जमा हो गये थे । यात्रियों के भोजन कर लेने के बाद सभा शुरू हुई। दल के नायक ने खड़े होकर कहा- भाइयो, आपने आज हम लोगों का जो आदर-सत्कार किया, उससे हमें यह आशा हो रही है कि हमारी बेड़ियां जल्द ही कट जायेंगी। मैंने पूरब और पश्चिम के बहुत-से देशों को देखा है, और मैं तजरबे से कहता हूँ कि आप में जो सरलता, जो ईमानदारी, जो श्रम और धर्मबुद्धि है, वह संसार के और किसी देश में नहीं। मैं तो यही कहूँगा कि आप मनुष्य नहीं,देवता हैं । आपको भोग-विलास से मतलब नहीं, नशा-पानी से मतलब नहीं,अपना काम करना, और अपनी दशा पर सन्तोष रखना, यह आपका आदर्श है; लेकिन आपका यही देवत्व, आपका यही सीधापन आपके हक में घातक हो रहा है। बुरा न मानिएगा, आप लोग इस संसार में रहने के योग्य नहीं। आपको तो स्वर्ग में कोई स्थान पाना चाहिए था। खेतों का लगान बरसाती नाले की तरह बढ़ता जाता है, आप चूं नहीं करते । अमले और अहलकार आपको नोचते रहते हैं, आप ज़बान नहीं हिलाते। इसका यह नतीजा हो रहा है कि आपको लोग दोनों हाथों से लूट रहे हैं ; पर आपको ख़बर नहीं। आपके हाथों से सभी रोजगार छिनते जाते हैं, आपका सर्वनाश हो रहा है; पर आप आंखे खोलकर नहीं देखते । पहले लाखों भाई सूत कातकर, कपड़े बनकर गुजर करते थे। अब सब कपड़ा विदेश से आता है। पहले लाखों आदमी यहीं नमक बनाते थे। अब नमक बाहर से आता है। यहाँ नमक बनाना जुर्म है। आपके देश में इतना नमक है कि सारे संसार का दो सौ साल तक