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पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/१२७

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समर-यात्रा
 

उससे काम चल सकता है ; पर पार सात करोड़ रुपये सिर्फ नमक के लिए देते हैं । आपके ऊसरों में, झीलों में नमक भरा पड़ा है, आप उसे छू नहीं सकते । शायद कुछ दिन में आपके कूओं पर भी महसूल लग जाय । क्या आप अब भी यह अन्याय सहते रहेंगे?

एक आवाज़ आई---हम किस लायक हैं ?

नायक---यही तो आपका भ्रम है। आप ही की गर्दन पर इतना बड़ा राज्य थमा हुआ है। आप हो इन बड़ी-बड़ी फौजों, इन बड़े अफसरों के मालिक हैं ; मगर फिर भी आप भूखो मरते हैं, अन्याय सहते हैं। इसलिए,कि आपको अपनी शक्ति का ज्ञान नहीं । यह समझ लीजिए कि संसार में जो'आदमी अपनी रक्षा नहीं कर सकता, वह सदैव स्वार्थी और अन्यायी आदमियों का शिकार बना रहेगा। आज संसार का सबसे बड़ा आदमी अपने प्राणों की बाजी खेल रहा है। हजारों जवान अपनी जान हथेली पर लिये आपके दुःखों का अन्त करने के लिए तैयार हैं । जो लोग आपको असहाय समझकर दोनो हाथों से आपको लूट रहे हैं, वह कब चाहेंगे कि उनका शिकार उनके मुह से छीन जाय । वे आपके इन सिपाहियों के साथ जितनी सख्तियां कर सकते हैं, कर रहे हैं ; मगर हम लोग सब कुछ सहने को तैयार हैं। अब सोचिए कि आप हमारी कुछ मदद करेंगे ? मरदों की तरह निकलकर अपने को अन्याय से बचायेंगे या कायरों की तरह बैठे हुए तकदोर को कोसते रहेंगे ?ऐसा अवसर फिर शायद कभी न आये। अगर इस वक्त चूके, तो फिर हमेशा हाथ मलते रहिएगा। हम न्याय और सत्य के लिए लड़ रहे हैं ; इसलिए न्याय और सत्य हो के हथियारों से हमें लड़ना है। हमें ऐसे वीरों की जरूरत है, जो हिंसा और क्रोध को दिल से निकाल डालें और ईश्वर पर अटल विश्वास रखकर धर्म के लिए सब कुछ झेल सके। बोलिए, आप क्या मदद करते हैं ?

कोई आगे नहीं बढ़ता। सन्नाटा छाया रहता है।

( ४ )

एकाएक शोर मचा---पुलीस ! पुलीस आ गई !!

पुलीस का दारोगा कांसटेबलों के एक दल के साथ आकर सामने खड़ा