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समर-यात्रा
 


थी। निश्चित समय पर जुलूस ने प्रस्थान किया। उसी वक्त पुलीस ने मेरी गिरफ्तारी का वारंट दिखाया। वारंट देखते ही तुम्हारी याद आई। पहले तुम्हें मेरी ज़रूरत थी। अब मुझे तुम्हारी ज़रूरत है। उस वक्त तुम मेरी हमदर्दी की भूखी थीं। अब मैं सहानुभूति की भिक्षा मांग रही हूँ। मगर मुझमें अब लेशमात्र भी दुर्बलता नहीं है। मैं चिन्ताओं से मुक्त हूँ। मैजिस्ट्रेट जो कठोर से कठोर दण्ड प्रदान करे, उसका स्वागत करूँगी। अब मैं पुलीस के किसी आक्षेप या असत्य आरोपण का प्रतिवाद न करूँगी : क्योंकि मैं जानती हूँ, मैं जेल के बाहर रहकर जो कुछ कर सकती हूँ, जेल के अन्दर रहकर उससे कहीं ज़्यादा कर सकती हूँ। जेल के बाहर भूलों की सम्भावना है, बहकने का भय है, समझौते का प्रलोभन है, स्पर्धा की चिन्ता है। जेल सम्मान और भक्ति की एक रेखा है, जिसके भीतर शैतान क़दम नहीं रख सकता। मैदान में जलता हुआ अलाव वायु में अपनी उष्णता को खो देता है; लेकिन इंजिन में बन्द होकर वही भाग संचालन-शक्ति का अखण्ड भण्डार बन जाती है।

अन्य देवियां भी आ पहुँची और मृदुला सबसे गले मिलने लगी। फिर'भारत माता की जय'--ध्वनि जेल की दीवारों को चीरती हुई आकाश में जा पहुँची।