लोग कहते हैं, जुलूस निकालने से क्या होता है। इससे यह सिद्ध होता है कि हम जीवित हैं, अटल हैं और मैदान से हटे नहीं हैं। हमें अपने हार न माननेवाले आत्माभिमानं का प्रमाण देना था। हमें यह दिखाना था कि हम गोलियों और अत्याचारों से भयभीत होकर अपने लक्ष्य से हटनेवाले नहीं और हम उस अवस्था का अन्त करके रहेंगे, जिसका आधार स्वार्थपरता और ख़ून पर है। उधर पुलिस ने भी जुलूस को रोककर अपनी शक्ति और विजय का प्रमाण देना आवश्यक समझा। शायद जनता को धोखा हो गया हो कि कल की दुर्घटना ने नौकरशाही के नैतिक ज्ञान को जाग्रत कर दिया है। इसधोखे को दूर करना उसने अपना कर्त्तव्य समझा। वह यह दिखा देना चाहती थी कि हम तुम्हारे ऊपर शासन करने आये हैं और शासन करेंगे। तुम्हारी खुशी या नाराज़ी की हमें परवाह नहीं है। जुलूस निकालने कीमनाही हो गई। जनता को चेतावनी दे दी गई कि ख़बरदार, जुलूस में न आना, नहीं दुर्गति होगी। इसका जनता ने वह जवाब दिया, जिसने अधि-कारियों की आंखें खोल दी होगी। संध्या समय पचास हज़ार आदमी जमा हो गये। आज का नेतृत्व मुझे सौंपा गया था। मैं अपने हृदय में एक विचित्र बल और उत्साह का अनुभव कर रही थी। एक अबला स्त्री, जिसे संसार का कुछ भी ज्ञान नहीं, जिसने कभी घर से बाहर पांव नहीं निकाला, आज अपने प्यारों के उत्सर्ग की बदौलतं उस महान् पद पर पहुँच गई थी, जो बड़े-बड़े अफ़सरों को भी, बड़े से बड़े महाराजा को भी प्राप्त नहीं-मैं इस समय जनता के हृदय पर राज कर रही थी। पुलिस अधिकारियों की इसी लिए गुलामी करती है कि उसे वेतन मिलता है। पेट की गुलामी उससे सब कुछ करवा लेती है। महाराजा का हुक्म लोग इसलिए मानते हैं कि उससे उपकार की आशा या हानि का भय होता है। यह अपार जन-समूह क्या मुझसे किसी फ़ायदे की आशा रखता था, या उसे मुझसे किसी हानि का भय था? कदापि नहीं। फिर भी वह मेरे कड़े से कड़े हुक्म को मानने के लिए तैयार था।इसी लिए कि जनता मेरे बलिदानों का आदर करती थी; इसी लिए कि उनके दिलों में स्वाधीनता की जो तड़प थी, गुलामी के जंजीरों को तोड़ देने की जो बेचैनी थी, मैं उस तड़प और बेचैनी की सजीव मूर्ति समझी जा रही
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