मारी गई है। ( नोट करता है ) गवर्नमेंट से प्रश्न करना चाहिए । असेंबली खुलते ही प्रश्नों का तांँता बांँध दूंँगा।
प्रश्न--क्या गवर्नमेंट बतायेगी कि गत पांँच सालों में भारतवर्ष में चाय की खपत कितनी बढ़ी है और उसका सर्वसाधारण में प्रचार करने के लिए गवर्नमेंट ने क्या कदम लिये हैं ?
(एक रमणी का प्रवेश---कटे हुए केश, आड़ी मांग, पारसी रेशमी साड़ी, कलाई पर घड़ी, आँखों पर ऐनक, पाँव में ऊँची एड़ी के लेडी शू, हाथ में एक बटुवा लटकाये हुए, साड़ी में ब्रूव है, गले में मोतियों का हार।)
क़ानूनी---( हाथ बढ़ाकर ) हल्लो मिसेज़ बोस ! आप खूब आई, कहिए-किधर की सैर हो रही है ? अबकी तो 'आलोक' में आपकी कविता बड़ी सुन्दर थी। मैं तो पढ़कर मस्त हो गया। इस नन्हे-से हृदय में इतने भाव कहाँ से आ जाते हैं ! मुझे आश्चर्य होता है। शब्द-विन्यास की तो आप रानी हैं। ऐसे-ऐसे चोट करनेवाले भाव आपको कैसे सूझ जाते हैं ?
मिसेज़ बोस---दिल जलता है, तो उसमें आप से आप धुएँ के बादल निकलते हैं। जब तक स्त्री-समाज पर पुरुषों का यह अत्याचार रहेगा, ऐसे भावों की कमी न रहेगी।
क़ानूनी---क्या इधर कोई नई बात हो गई ?
बोस---रोज़ ही होती रहती है। मेरे लिए डाक्टर बोस की याज्ञा नहीं कि किसी के घर मिलने जाओ, या कहों सैर करने जाओ। अबकी कैसी गरमी पड़ी है कि सारा रक्त जल गया ; पर मैं पहाड़ों पर न जा सकी। मुझसे यह अत्याचार, यह गुलामी नहीं सही जाती।
क़ानूनी---डाक्टर बोस खुद भी तो पहाड़ों पर नहीं गये।
बोस---वह न जायँ, उन्हें धन की हाय-हाय पड़ी है। मुझे क्यों अपने साथ जलाते हैं। वह अगर अभागे हैं, तो अपने भाग्य को रोयें, मुझे क्यों अपने साथ लिये मरते हैं ? वह क्लब जाना नहीं चाहते, उनका समय रुपए उगलता है, मुझे क्यों रोकते हैं। वह खद्दर पहनें, मुझे क्यों अपने पसन्द के कपड़े पहनने से रोकते हैं ? वह अपनो माता और भाइयों के गुलाम बने रहें, मुझे क्यों उनके साथ रो-रोकर दिन काटने पर मजबूर करते हैं ?