सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
३६]
समर-यात्रा
 

भिमान झलक रहा था, मानो कह रहा हो कि यहाँ कौन है, जो मेरी बराबरी कर सके। गोदावरी के मन में स्पर्धा का भाव जाग उठा। चाहे कुछ हो जाय, इसके हाथ में यह पैसा न जाय। समझता है, इसने बीस रुपए क्या कह दिये, सारे संसार को मोल ले लिया।

गोदावरी ने कहा––चालीस रुपए।

उस पुरुष ने तुरन्त कहा––पचास रुपए।

हज़ारों आँखें गोदावरी की ओर उठ गईं। मानो कह रही हों, अब हमारी लाज रखिए।

गोदावरी ने उस आदमी की ओर देखकर धमकी से मिले हुए स्वर में कहा––सौ रुपए।

धनी आदमी ने भी तुरन्त कहा––एक सौ बीस रुपए।

लोगों के चेहरों पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। समझ गये इसके हाथ विजय रही। निराश आँखों से गोदावरी की ओर ताकने लगे; मगर ज्यों ही गोदावरी के मुँह से निकला, डेढ़ सौ कि चारों तरफ़ से तालियाँ पड़ने लगी, मानो किसी दंगल के दर्शक अपने पहलवान की विजय पर मतवाले हो गये हों।

उस आदमी ने फिर कहा––पौने दो सौ।

गोदावरी बोली––दो सौ।

फिर चारों तरफ से तालियाँ पड़ीं। प्रतिद्वन्द्वी ने अब मैदान से हट जाने ही में अपनी कुशल समझी।

गोदावरी विजय के गर्व पर नम्रता का पर्दा डाले हुए खड़ी थी और हज़ारों शुभ कामनाएँ उस पर फूलों की तरह बरस रही थीं।

(४)

जब लोगों को मालूम हुआ कि यह देवी मिस्टर सेठ की बीबी हैं, तो उन्हें एक ईर्ष्यामय आनन्द के साथ उस पर दया भी आई।

मिस्टर सेठ अपनी फ्लावर शो में ही थे कि एक पुलीस के अफ़सर ने उन्हें यह घातक संवाद सुनाया। मिस्टर सेठ सकते में आ गये, मानो सारी देह शून्य पड़ गई हो। फिर दोनों मुट्ठियाँ बाँध लीं। दाँत पीसे, ओठ चबाये और उसी वक्त घर चले। उनकी मोटर-साइकिल कभी इतनी तेज़ न चली थी।