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पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/३७

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पत्नी से पति
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घर में कदम रखते ही उन्होंने चिनगारियाँ-भरी आँखों से देखते हुए कहा––क्या तुम मेरे मुँह में कालिख पुतवाना चाहती हो?

गोदावरी ने शांत भाव से कहा––कुछ मुँह से भी तो कहो या गालियाँ ही दिये जाओगे? तुम्हारे मुँह में कालिख लगेगी, तो क्या मेरे मुँह में न लगेगी। तुम्हारी जड़ खुदेगी, तो मेरे लिए दूसरा कौन-सा सहारा है।

मिस्टर सेठ––सारे शहर में तूफ़ान मचा हुआ है, तुमने मेरे रुपये दिये क्यों?

गोदावरी ने उसी शान्त भाव से कहा––इसलिए कि मैं उसे अपना ही रुपया समझती हूँ।

मिस्टर सेठ दाँत किटकिटाकर बोले––हरगिज़ नहीं, तुम्हें मेरा रुपया ख़र्च करने का कोई हक़ नहीं है।

गोदावरी––बिलकुल ग़लत, तुम्हारे रुपये ख़र्च करने का तुम्हें जितना अख़्तियार है, उतना ही मुझको भी है। हाँ, जब तलाक़ का कानून पास करा लोगे और तलाक़ दे दोगे, तब न रहेगा।

मिस्टर सेठ ने अपना हैट इतने ज़ोर से मेज़ पर फेंका कि वह लुढ़कता हुआ ज़मीन पर गिर पड़ा और बोले––मुझे तुम्हारी अक्ल पर अफ़सोस आता है। जानती हो तुम्हारी इस उद्दंडता का क्या नतीजा होगा? मुझसे जवाब तलब हो जायगा। बतलाओ, क्या जवाब दूँगा। जब यह ज़ाहिर है कि कांग्रेस सरकार से दुश्मनी कर रही है तो कांग्रेस की मदद करना सरकार के साथ दुश्मनी करना है।

'तुमने तो नहीं की कांग्रेस की मदद!'

'तुमने तो की!'

'इसकी सज़ा मुझे मिलेगी या तुम्हें? अगर मैं चोरी करूँ, तो क्या तुम जेल जाओगे?'

'चोरी की बात और है, यह बात और है।'

'तो क्या कांग्रेस की मदद करना चोरी या डाके से भी बुरा है?'

'हाँ, सरकारी नौकर के लिए चोरी या डाके से भी कहीं बुरा है।'

'मैंने यह नहीं समझा था।'