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पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/४३

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लांछन
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देवियाँ जुगनू को दुत्कारती; पर यहाँ तो मैके और ससुराल, ननिहाल और ददियाल, फुफियाल और 'मौसियाल, चारों ओर की रक्षा करनी थी और जिस किले में इतने द्वार हों, उसकी रक्षा कौन कर सकता है। वहाँ तो हमला करनेवाले के सामने मस्तक झुकाने में ही कुशल है। जुगनू के दिल में हज़ारों मुरदे गड़े पड़े थे और वह ज़रूरत पड़ने पर उन्हें उखाड़ दिया करती थी। जहाँ किसी महिला ने दून की ली या शान दिखाई, वहीं जुगनू की त्योरियाँ बदलीं। उसकी एक बड़ी निगाह अच्छे-अच्छों को दहला देती थी; मगर यह बात न थी कि स्त्रियांँ उससे न मिलती और न उसका आदर-सत्कार करतीं। अपने पड़ोसियों की निन्दा सनातन से मनुष्य के लिए मनोरंजन का विषय रही है और जुगनू के पास इसका काफ़ी सामान था।

( २ )

नगर में इंदुमती-महिला-पाठशाला नाम का एक लड़कियों का हाई स्कूल था। हाल में मिस खुरशेद उसकी हेड मिस्ट्रेस होकर आई थीं। शहर‌ में महिलाओं का दूसरा क्लब न था। मिस खुरशेद एक दिन आश्रम में आई। ऐसी ऊँचे दर्जे की शिक्षा पाई हुई आश्रम में कोई देवी न थीं। उनकी बड़ी आवभगत हुई। पहले ही दिन मालूम हो गया कि मिस खुरशेद के आने से आश्रम में एक नये जीवन का संचार होगा। कुछ इस तरह दिल खोलकर हरेक से मिलीं, कुछ ऐसी दिलचस्प बातें कीं कि सभी देवियाँ मुग्ध हो गई। गाने में भी चतुर थीं। व्याख्यान भी खूब देती थीं और अभिनय-कला में तो उन्होंने लदन में नाम कमा लिया था। ऐसी सर्वगुण-सम्पन्ना देवी का आना अश्रम का सौभाग्य था। गुलाबी गोरा रंग, कोमल गात,मद भरी अखि, नये फैशन के कटे हुए केश, एक-एक अंग साँचे में ढला हुआ, मादकता की इससे अच्छी प्रतिमा न बन सकती थी।

चलते समय मिस खुरशेद ने मिसेज़ टंडन को, जो आश्रम की प्रधान थीं, एकान्त में बुलाकर पूछा---वह बुढ़िया कौन है ?

जुगनू कई बार कमरे में आकर मिस खुरशेद को अन्वेषण की आँखों से देख चुकी थी, मानो कोई शह सवार किसी नयी घोड़ी को देख रहा हो।