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समर-यात्रा
 


मिसेज़ टंडन ने मुसकिराकर कहा-यहाँ ऊपर का काम करने के लिए नौकर है। कोई काम हो तो बुलाऊँ ? मिस खुरशेद ने धन्यवाद देकर कहा-जी नहीं, कोई विशेष काम नहीं है। मुझे चालबाज़ मालूम होती है। यह भी देख रही हूँ कि यहाँ की वह सेविका नहीं, स्वामिनी है। मिसेज़ टण्डन तो जुगनू से जली बैठी ही थीं। इनके वैधव्य को लांछित करने के लिए, वह इन्हें सदासोहागिन कहा करती थी। मिस खुरशेद से उसकी जितनी बुराई हो सकी, वह की, और उससे सचेत रहने का आदेश दिया।

मिस खुरशेद ने गंभीर होकर कहा-तब तो भयंकर स्त्री है। जभी सब देवियाँ इससे कापती हैं। आप इसे निकाल क्यों नहीं देतीं। ऐसी चुडैल को एक भी दिन न रखना चाहिए।

मि० टण्डन ने अपनी मजबूरी जताई-निकाल कैसे दूं। जिन्दा रहना मुश्किल हो जाय। हमारा भाग्य उसकी मुट्ठी में है। आपको दो-चार दिन में उसके जौहर खुलेंगे। मैं तो डरती हूँ, कहीं आप भी उसके पंजे में न फँस जायें। उसके सामने भलकर भी किसी पुरुष से बातें न कीजिएगा। इसके गोयंदे न-जाने कहाँ-कहाँ लगे हुए हैं। नौकरों से मिलकर भेद यह ले, डाकियों से मिलकर चिट्ठियां यह देखे, लड़कों को फुसलाकर घर का हाल यह पूछे। इस रोड को तो खुफ़िया पुलीस में जाना चाहिए था। यहां न जाने क्यों श्रा मरी।

मिस खुरशेद चिन्तित हो गई, मानो इस समस्या को हल करने की फ़िक में हों। एक क्षण बाद बोलीं-अच्छा मैं इसे ठीक करूँगी, अगर निकाल न दूं, तो कहना।

मि० टण्डन-निकाल देने ही से क्या होगा। उसकी जबान तो न बन्द होगी। तब तो वह और भी निडर होकर कीचड़ फेंकेगी।

मिस खुरशेद ने निश्चित स्वर में कहा-मैं उसकी जबान भी बन्द कर दूँगी बहन ! आप देख लीजिएगा। टके की औरत यहाँ बादशाहत कर रही है। मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकती।

वह चली गई, तो मिसेज़ टण्डन ने जुगनू को बुलाकर कहा-इस नई मिस साहब को देखा। यहाँ प्रिंसिपल हैं।