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पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/४९

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लांछन
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कल तुम इसी वक्त इसी ठाट से फिर आ जाना। बुढ़िया कल फिर पायेगी।उसके पेट में पानी न हजम होगा। नहीं ऐसा क्यों। जिस वक्त वह आयेगी,मैं तुम्हें ख़बर दूँगी। बस तुम छैला बनी हुई पहुँच जाना।

आश्रम में उस दिन जुगनू को दम मारने की फुर्सत न मिली। उसने सारा वृत्तान्त मिसेज़ टण्डन से कहा। मिसेज टण्डन दौड़ी हुई आश्रम पहुँची और अन्य महिलाओं को ख़बर सुनाई। जुगन उसकी तस्दीक़ करने के लिए बुलाई गई। जो महिला आती, वह जुगनू के मुँह से यह कथा सुनती। हरेक रिहर्सल में कुछ-कुछ रंग और चढ़ जाता। यहां तक कि दोपहर होते होते सारे शहर के सभ्य-समाज में यह ख़बर गूंज उठी।

एक देवी ने पूछा -- यह युवक है कौन ?

मि० टण्डन -- सुना तो, उनके साथ का पढ़ा हुआ है। दोनों में पहले से कुछ बातचीत रही होगी। वही तो मैं कहती थी कि इतनी उम्र हो गई,यह क्वारी कैसे बैठी है। अब कलई खुली।

जुगनू -- और कुछ हो या न हो, जवान तो बांका है।

टंडन -- यह हमारी विद्वान् बहनों का हाल है।

जुगनू -- मैं तो उनकी सूरत देखते ही ताड़ गई थी। धूप में बाल नहीं सुफ़ेद किये हैं।

टंडन -- कल फिर जाना।

जुगनू -- कल नहीं, मैं आज रात ही को जाऊँगी। लेकिन रात को जाने के लिए कोई बहाना ज़रूरी था। मिसेज टण्डन ने आश्रम के लिए एक किताब मँगवा भेजी। रात के नौ बजे जुगनू मि० खुरशेद के बँगले पर जा पहुँची। संयोग से लीलावती उस वक्त मौजूद थी। बोली-यह बुढ़िया तो बेरतह पीछे पड़ गई।

खुरशेद -- मैंने तो तुमसे कहा था, उसके पेट में पानी न पचेगा। तुम जाकर रूप भर आओ। तब तक इसे मैं बातों में लगाती हूँ। शराबियों की तरह अंट-संट बकना शुरू करना। मुझे भगा ले जाने का प्रस्ताव भी करना। बस यों बन जाना, जैसे अपने होश में नहीं हो।