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पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/४८

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समर-यात्रा
 


अभिवादन किया, मानो जामे में फूली न समाती हों। जुगनू उसे देखकर कोने में दबक गई।

मिस खुरशेद ने युवक से गले मिलकर कहा-प्यारे, मैं कब से तुम्हारी राह देख रही हूँ। (जुगनू से) माजी, आप जायँ, फिर कभी आना। यह हमारे परम-मित्र विलियम किंग हैं। हम और यह बहुत दिनों तक साथ-साथ पढ़े हैं।

जुगनू चुपके से निकलकर बाहर आई। खानसामा खड़ा था। पूछा- यह लौडां कौन है ?

खानसामा ने सिर हिलाया -- मैंने इसे आज ही देखा है। शायद अब क्वारेपन से जी ऊबा। अच्छा तरहदार जवान है।

जुगन - दोनों इस तरह टूटकर गले मिले हैं कि मैं तो लाज के मारे गड़ गई। ऐसी चूमा-चाटी तो जोरू-ख़सम में भी नहीं होती। दोनों लिपट गये। लौंडा तो मुझे देखकर कुछ झिझकता था; पर तुम्हारी मिस साहब तो जैसे मतवाली हो गई थीं।

खानसामा ने मानो अमंगल के आभास से कहा- मुझे तो कुछ बेढब मामला नज़र आता है।

जुगनू तो यहाँ से सीधे मिसेज़ टण्डन के घर पहुंची। इधर मिस खुर-शेद और युवक में बातें होने लगी।

मि० खुरशेद ने क़हक़हा मारकर कहा-तुमने अपना पार्ट खूब खेला 'लीला, बुढ़िया सचमुच चौंधिया गई।

लीला -- मैं तो डर रही थी कि कहीं बुढ़िया भांप न जाय ।

मि० खुरशेद-मुझे विश्वास था, वह आज ज़रूर आयेगी। मैंने दूर ही से उसे बरामदे में देखा और तुम्हें सूचना दी। आज आश्रम में बड़े मज़े रहेंगे। जी चाहता है, महिलाओं की कनफुसकियाँ सुनूँ ।देख लेना सभी उसकी बातों पर विश्वास करेंगी।

लीला -- तुम भी तो जान-बूझकर दलदल में पांव रख रही हो।

मि० खुरशेद-मुझे अभिनय में मज़ा आता है बहन ! ज़रा दिल्लगी रहेगी। बुढ़िया ने बड़ा जुल्म कर रखा है। ज़रा उसे सबक़ देना चाहती हूँ।