पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/५३

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लांछन
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आकर रुकी। महिलाओं ने सिर उठा-उठाकर देखा, गाड़ी में मिस खुरशेद और विलियम किंग बैठे हुए थे।

जुगन ने हाथ फैलाकर हाथ से इशारा किया---वही लौंडा है ! महिलाओं का सम्पूर्ण समूह चिक के सामने आने के लिए विकल हो गया।

मिस खुरशेद ने मोटर से उतरकर हूड बन्द कर दिया और आश्रम के द्वार की ओर चलीं। महिलाएँ भाग-भागकर अपनी-अपनी जगह आ बैठीं।

मिस खुरशेद ने कमरे में कदम रखा। किसी ने स्वागत न किया। मिस खुरशेद ने जुगनू की ओर निस्संकोच आँखों से देखकर मुसकिराते हुए कहा---कहिए बाईजी, रात आपको चोट तो नहीं आई।

जुगनू ने बहुतेरी दीदा-दिलेर स्त्रियां देखी थीं, पर इस ढिठाई ने उसे चकित कर दिया। चोर हाथ में चोरी का माल लिये, साह को ललकार रहा था।

जुगनू ने ऐंठकर कहा--जी न भरा हो, तो अब पिटवा दो। सामने ही तो हैं।

खुरशेद---वह इस वक्त तुमसे अपना अपराध क्षमा कराने आये हैं ! रात वह नशे में थे।

जुगनू ने मिसेज़ टण्डन की ओर देखकर कहा---और आप भी तो कुछ कम नशे में नहीं थीं।

खुरशेद ने व्यंग समझकर कहा---मैंने आज तक कभी नहीं पी, मुझ पर झूठा इलज़ाम मत लगायो।

जुगनू ने लाठी मारी---शराब से भी बड़े नशे की चीज़ है कोई, वह उसी का नशा होगा। उन महाशय को परदे में क्यों ढँक दिया। देवियां भी तो उनकी सूरत देखतीं।

मिस खुरशेद ने शरारत की---सूरत तो उनकी लाख दो लाख में एक है।

मिसेज़ टण्डन ने आशंकित होकर कहा---नहीं, उन्हें यहाँ लाने की कोई ज़रूरत नहीं। आश्रम को हम बदनाम नहीं करना चाहते।