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पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/५४

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समर-यात्रा
 

मिस खुरशेद ने आग्रह किया---मुआमले को साफ़ करने के लिए उनका आप लोगों के सामने आना जरूरी है। एकतरफ़ी फ़ैसला आप क्यों करती हैं।

मिसेज टंडन ने टालने के लिए कहा---यहाँ कोई मुक़दमा थोड़े ही पेश है।

मिस खुरशेद--वाह ! मेरी इतज्ज़़में बट्टा लगा जा रहा है और आप कहती हैं---कोई मुकदमा नहीं है । मिस्टर किंग आयेंगे और आपको उनका बयान सुनना होगा।

मिसेज टण्डन को छोड़कर और सभी महिलाएँ किंग को देखने के लिए उत्सुक थीं। किसी ने विरोध न किया।

खुरशेद ने द्वार पर आकर ऊँची आवाज़ से कहा--- तुम ज़रा यहाँ चले आओ।

हूड खुला और मिस लीलावती रेशमी साड़ी पहने मुसकिराती हुई निकल आईं।

आश्रम में सन्नाटा छा गया। देवियाँ विस्मित आँखों से लीलावती को देखने लगीं।

जुगनूं ने आँखें चमकाकर कहा---उन्हें कहाँ छिपा दिया आपने ?

खुरशेद--छू मन्तर से उड़ गये। जाकर गाड़ी देख लो।

जुगनू लपककर गाड़ी के पास गई और खूब देख-भालकर मुँह लटकाये हुए लौटी।

मिस खुरशेद ने पूछा---क्या हुआ, मिला कोई ?

जुगनू---मैं यह तिरिया-चरित्तर क्या जानूं। (लीलावती को ग़ौर से देखकर ) और मरदों को साड़ी पहनाकर आँखों में धूल झोंक रही हो । यही तो हैं, वह रातवाले साहब।

खुरशेद---खूब पहचानती हो ?

जुगनू---हा-हाँ, क्या अन्धी हूँ।

मिसेज़ टण्डन---क्या पागलों-सी बातें करती हो जुगनू, यह तो डाक्टर लीलावती हैं।