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समर-यात्रा
 

जयराम ने अधीर होकर पूछा -- साफ़ - साफ़ क्यों नहीं कहते, क्या बात है!

स्वयंसेवक डरते-डरते बोला -- सब-के-सब उनसे दिल्लगी कर रहे हैं।देवियों का यहाँ आना अच्छा नहीं।

जयराम ने और कुछ न पूछा। डंडा उठाया और लाल-लाल आँखें निकाले बिजली की तरह कौंधकर शराबखाने के सामने जा पहुँचा और मिसेज़ सकसेना का हाथ पकड़कर पीछे हटाता हुआ शराबियों से बोला-अगर तुम लोगों ने देवियों के साथ ज़रा भी गुस्ताख़ी की,तुम्हारे हक़ में अच्छा न होगा। कल मैंने तुम लोगों की जान बचाई थी। आज इसी डंडे से तुम्हारी खोपड़ी तोड़कर रख दूंँगा।

उसके बदले हुए तेवर देखकर सब-के-सब नशेबाज़ घबड़ा गये। वे कुछ कहना चाहते थे कि मिसेज़ सकसेना ने गम्भीर भाव से पूछा-आप यहाँ क्यों आये ? मैंने तो आपसे कहा था, अपनी जगह से न हिलिएगा। मैंने तो आपसे मदद न मांगी थी ?

जयराम ने लज्जित होकर कहा -- मैं इस नीयत से यहां नहीं आया था ! एक ज़रूरत से इधर निकला था। यहाँ जमाव देखकर आ गया। मेरे ख़याल में आप अब यहां से चलें। मैं आज कांग्रेस कमेटी में यह सवाल पेश करूँगा कि इस काम के लिए पुरुषों को भेजें।

मिसेज़ सकसेना ने तीखे स्वर में कहा -- आपके विचार में दुनिया के सारे काम मरदों ही के लिए हैं ?

जयराम -- मेरा यह मतलब न था।

मिसेज़ सकसेना -- तो आप जाकर आराम से लेटें और मुझे अपना काम करने दें।

जयराम वहीं सिर झुकाये खड़ा रहा।

मिसेज़ सकसेना ने पूछा-अब आप क्यों खड़े हैं ?

जयराम ने विनीत स्वर में कहा -- मैं भी यहीं एक किनारे खड़ा रहूँगा।

मिसेज़ सकसेना ने कठोर स्वर में कहा-जी नहीं,आप जायँ।

जयराम धीरे-धीरे लदी हुई गाड़ी की भांति चला और पाकर फिर