पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
९४ ]
समर-यात्रा
 

ठीकेदार ने लपककर एक मोटा सोंटा मैकू के हाथ में दे दिया। और डण्डेबाज़ी का तमाशा देखने के लिए द्वार पर खड़ा हो गया।

मैकू ने एक क्षण डण्डे को तौला, तब उछलकर ठीकेदार को ऐसा डण्डा रसीद किया कि वह वहीं दोहरा होकर द्वार में गिर पड़ा। इसके बाद मैकू ने पियक्कड़ों की ओर रुख़ किया और लगा डण्डों की वर्षा करने । न आगे देखता था, न पीछे, बस डण्डे चलाये जाता था।

ताड़ीबाज़ों के नशे हिरन हुए । घबड़ा-घबड़ाकर भागने लगे; पर किवाड़ों के बीच में ठीकेदार की देह बिंधी पड़ी थी। उधर से फिर भीतर की ओर लपके। मैकू ने फिर डण्डों से आवाहन किया। आख़िर सब ठीकेदार की देह को रौंद-रौंदकर भागे। किसी का हाथ टूटा, किसी का सिर फूटा, किसी की कमर टूटी। ऐसी भगदड़ मची कि एक मिनट के अन्दर ताड़ीखाने में एक चिड़िये का पूत भी न रह गया।

एकाएक मटकों के टूटने की आवाज़ आई। एक स्वयंसेवक ने भीतर झांककर देखा, तो मैक मटकों का विध्वंस करने में जुटा हुआ था। बोला-भाई साहब, अजी भाई साहब, यह आप क्या गज़ब कर रहे हैं। इससे तो कहीं अच्छा था कि आपने हमारे ही ऊपर अपना गुस्सा उतारा होता।

मैकू ने दो-तीन हाथ चलाकर बाक़ी बची हुई बोतलों और मटकों का सफ़ाया कर दिया और तब चलते-चलते ठीकेदार को एक लात जमाकर बाहर निकल पाया।

कादिर ने उसको रोककर पूछा—तू पागल तो नहीं हो गया बे ? क्या करने आया था, और क्या कर रहा है।

मैकू ने लाल-लाल आँखों से उसकी और देखकर कहा-हाँ, अल्लाह का शुक्र है कि मैं जो करने आया था, वह न करके कुछ और ही कर बैठा। तुममें कूवत हो, तो वालेंटरों को मारो, मुझमें कूवत नहीं है। मैंने तो एक थप्पड़ लगाया, उसका रंज़ अभी तक है और हमेशा रहेगा! तमाचे के निशान मेरे कलेजे पर बन गये हैं। जो लोग दूसरों को गुनाह से बचाने के लिए अपनी जान देने को खड़े हैं, उन पर वही हाथ उठायेगा, जो पाजी है, कमीना है, नामर्द है। मैकू फ़िसादी है, लठैत है, गुण्डा है ; पर कमीना