पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१०

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प्राक्कथन कानं स का अधिवेशन प्राचार्य नरेन्द्रदेव के अपने प्रान्त मेरठ में हो रहा है । इस अवसर पर उनके प्रमुख लेखों और भाषणों का प्रथम चुनीदा सङ्कलन प्रकाशित होना उचित ही है । मार्च सन् १९४० में रामगढ़ में हुए कांग्रेस के पूर्ण अधिवेशन के पश्चात् हमारे स्वतन्त्रता आन्दोलन को अग्नि-परीक्षा में से गुजरना पड़ा है । संघर्ष और तूफान के छ वर्षों में लगभग चार नगेन्द्र देव जी ने जेल में काटे। इससे उनके दुर्वल स्वास्थ्य को जो भारी आघात पहुँचा, वह अकथनीय है । इधर साल भर से तो बीमारी ने देश को उनके दिन प्रति दिन के पथप्रदर्शन और नेतृत्व से बिलकुल उचित कर दिया है। यह कितनी भारी क्षति है, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। सभी जानते हैं कि अपने प्रान्त के और देश के राजनैतिक जीवन में, कांग्रेस में और समाजवादी तथा अन्य तत्सम्बन्धित अान्दोलनों में उनका कितना अग्रणी स्थान रहा है। अतः जो व्यक्ति उनके सक्रिय सामाजिक जीवन में पुन: लौट आने की प्रतीक्षा करते रहे हैं, वे इस पुस्तक का और भी अधिक स्वागत 1 करेंगे। पुस्तक का नाम 'समाजवाद और राष्ट्रीय कान्ति' ही इसके स्वरूप का पर्या-त परिचायक है। समाजवाद विचारों को अब कांग्रेस और देश ने बहुत कुछ मान लिया है। परन्तु वारह वर्ष पूर्व सन् १९३४ में जब कांग्रेस समाजवादी पार्टी का निर्माण हुअा था, तब उसकी स्थिति इतनी स्पष्ट नहीं थी। भारत जैसे देश में, जो विदेशी शासन से मुक्त होने के लिए संघर्ष कर रहा हो, समाजवादियों का क्या स्थान और कर्त्तव्य हो ? सामाजिक क्रान्ति और राष्ट्रीय क्रान्ति की शक्तियों में परस्पर क्या सम्बन्ध हो ? ऐसे प्रश्नों के उत्तरों का सैद्धान्तिक ही नहीं, बल्कि भारी व्यावहारिक महत्व था-देश के लिए भी और समाजवादियों के लिए भी ।