पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१०१

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( ७४ ) से विख्यात हुए. उस समय जौनपुर जिले में टिके हुए थे और वहाँ से प्रतापगढ़ परगने के किसानों में प्रचार कर रहे थे । सन् १६२० में किसान सभाओं की हलचलें तेजी के बढ़ने लगी । कृपकों की माँगें ये i- १) वेदखलो पर रोक (२) बेगारबन्दी (४) जुर्मानों की रोक थाम ४) त्रोंस की रकमों की बन्दी । किसानों को शपथ लेनी पड़ी कि वे शान्त रहेंगे भोंस न देंगे पेगार न करेंगे अपनी पैदावार को बाजार भाव पर बेचेगे नज़राना न देगे चाहे वेदखल होना पड़ बंदग्गल खेत को नहीं लेंगे और जब तक वेदखली के कानूनों को रद न किया जायगा तब तक चैन न लेगे। प्रत्येक किसान को ऐसी चौदह शपथे लेनी पड़ी। प्रतापगढ़ से किसान अान्दोलन रायबरेली जिले की दक्षिणी तहसीलों में फैल गया । सन् १६२१ में वह अपने पूरे जोर पर था। हजारों ही व्यक्ति सभात्रों में एकत्रित होते। किमान पान्दोलन सामुदायिक भेदभावों से बिनकुल रहित का हिन्दू मुसलमान नी पुरुप सब उसमें सम्मिलित थे । उप कृपक जागृति से गवर्नमेन्ट और तालु केदार डर गये । ७ जनवरी सन १६.२१ को मुन्शीगंज में गोली चली और बहुत से किसान घायल हुए । रायबरेली में गोली चलाने से कृपक अान्दोलन बुन्छ हद तक दब गया । परन्तु तब तक तो अान्दोलन अवध के बहुत से जिलों में फैल चुका था । किसानों के शक्तिशाली मंगठन ने अवध के राजकर्मचारियों को लगान-कानून पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य कर दिया। नोटिस द्वारा बेदखलियों की समाप्ति करदी गई । नये कानून से किसानों को जीवन-भर का काश्तकारी का हक मिल गया । उस समय असहयोग आन्दोलन अपने पूरे ज़ोर पर था | सरकार किसान आन्दोलन का उससे योग होने देना नहीं चाहती थी । इसलिये भी उसने किसानों