पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१०२

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की माँगों की और अधिक सहानुभूति दिखलाई । किसानों का मुख्य अभाव-अभियोग बेदखली के विषय में था। जैसे ही उस माँग की भी पूर्ति हो गई उनका असहयोग आन्दोलन के प्रति जोश ठण्डा पड़ गया। कांग्रेस अपने संघर्ष में किसानों का सहयोग तो अवश्य चाहती थी परन्तु वह उस समय कृपकों की आर्थिक मांगों के लिए लड़ने को तैयार न थीं । कालान्तर में असहयोग आन्दोलन स्वर ठण्डा पड़ गया । सन् १९२१ के अन्त में किसान अान्दोलन “एका अान्दोलन" के रूप में हरदोई. खीरी, सीतापुर और लखनऊ के जिलों में फिर चल पड़ा । यह अान्दोलन तालुकेदारों और सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध था । इन जिलों में तालुकेदार अपने कानूनी हक से अधिक उघाई कर रहे थे और इससे किसानों में व्यापक अशान्ति फैल गई थी। यदि किसी किसान-कार्यकर्ता के पकड़े जाने की नौबत आती थी तो किसान भारी संख्या में इकट्टे होकर उग्म के छुड़ाने का उपक्रम कर लेते थे। ऐसी थी उनकी मनःस्थिनि । उन्होने बँधे हुए लगान से अधिक देने से इन्कार कर दिया। अनेक स्थानों पर जमीदारों के कारिन्दों से उनकी झड़पें भी हुई। एका सभायें दो प्रकार थीं-एक प्रकार की तं, केवल आर्थिक प्रश्नों को लेकर चली थीं और दूसरे प्रकार की गजनैनिक कार्यक्रम को भी लिए हुए थी। उनकी बैठकों में अदालतों के बाहाकार स्वराज्य और स्वदेशी से सम्बन्धित प्रस्ताव वादविवाद के उपरान्त पास किये जाते थे । रायबरेली के तत्कालीन डिप्टी कलक्टर पंडित जनार्दन जोशी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जमींदार अपने प्रासामियों से अधिक उघाई करते हैं । उदाहरण के लिए एक जमीदार ने जो ७७ हजार रुपये पाने का अधिकारी था ६ हजार पाँच सौ रुपये उनके अतिरिक्त और वसूल किये । इमी प्रकार एक