पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१०३

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अन्य जमीदार साहब ३२००० रुपये के स्थान पर ४५०४० रुपये लगान मे वसूल करते थे। श्री जोशी ने स्वयं कहा था कि यदि किसान इस सड़ी हुई व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह करें तो इसमें आश्चर्य क्या है। श्री कलसर आई० सी० एस० ने एक और उदाहरण बतलाया जिसमें जमीदार ने १७०० के स्थान पर ५७०० बसूल किये। किसानों के और भी अभाव अभियोग थे। सब स्थानो पर किमानों की पंचायतें बन गई थीं और बहुधा किसानों की राज्य व्यवस्था से टक्कर हो जाती थी। गवर्नमेण्ट ने किमान-आन्दोलन को दवाने का भरसक प्रयत्न किया और बढ़ते हुए दमन चक्र के कारण शनैः शनैः उसका बल टूट गया । सन् १६३२ में कांग्रेस ने लगानवन्दी का संघर्ष छेड़ा। यह सघर्ष इलाहाबाद और रायबरेली के जिलों में काफी शक्तिसम्पन्न था-अन्य स्थानों पर उसको बल न मिल सका । सन् १९३३ मे इलाहाबाद में केन्द्रीय किसान संघ की स्थापना हुई । लगभग चार जिलों में उसकी शाखायें खोली जा चुकी हैं । परन्तु अभी तक संगटित कार्य प्रारम्भ नहीं हो पाया है । अन्य प्रान्तों में भी किसान क्षुब्ध विहार में एक शक्तिशाली किसान संस्था मौजूद है। अखिल भारतीय किसान सभा की भी स्थापना हो चुकी है । अप्रैल सन् १६३६ में उसका प्रारम्भिक अधिवेशन लखनऊ में हो चुका है। यह अत्यन्त श्रावश्यक और बांछनीय है कि कांग्रेस कार्यकर्ता जिले में किसानों को उनकी आर्थिक माँगों के आधार पर किसान संघों के रूप में संगठित करें।