पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१०९

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दृष्टिकोण की टीक व्याख्या नहीं कर रहा हूं । इसलिए अपने कथन की पुष्टि करने के लिए मै लेनिन की रचनायों में से एक अवतरण देना चाहूंगा | क्या वृहत्तर :स की वर्ग-चेतनामयी जनता राष्ट्रीय-गौरव की भावना से रहित है ? बिलकुल नहीं। हम अपने देश और भाषा से प्रेम करते है हममें राष्ट्रीय स्वाभिमान कूट कूट कर भरा हुआ है और इसी कारण से हम अपनी पिछली दामना से घृणा करते है और अपनी वनमान दामना से भी। जो राष्ट्र ग्रन्यों को सताता है वह स्वयं भी स्वतंत्र नहीं हो सकना-यह जीनवी सदी में जनतन्त्र के महान प्रतिनिधि मार्म और एन्जिल्स की शिक्षा थी जिनका अनुसरण कान्तिकारी जनमभुदाय करना है । गृहलर कम के हम श्रमिक अपने देश को स्वतंत्र स्वाधीन जननंत्रात्मक और महान देखना चाहते हैं और अपने पड़ोसी राष्ट्रों में उसके सम्वन्ध समानता के मानवीय सिद्धान्त मे प्रेरित दग्दना चाहते हैं विशेषाधिकारों के दागनापूर्ण और अपमानजनक सिद्धान्त मे प्रेरित नहीं। सम्भवन मान के इस कथन मे कि श्रमिकों का कोई अपना देश नहीं होता कुछ भाति पैनी है । परन्तु मार्म का तात्पर्य श्रमिकों को केवल यह बनाना है कि वे अपने देश में ही पराये और वहि कृन मम जाते हैं और जीवन की मुख्य मुरिधानों से उन्हें वंचित रखा जाता है । यह मान ने इसलिए किया है जिसमे श्रमिक लोग अपने लिए मत्ता प्राम करने की आवश्यकता को समझे। दूगरा पानेप यह है कि वर्ग-संघर्ष के प्रश्न को छोड़कर हम वनंत्रता के अान्दोलन को छिन्न भिन्न कर रहे हैं । परन्तु वर्तमान परिस्थितियों में बिना श्रमिकों और कृपकों को अपने साथ लिए. स्वतंत्रता मिलना अगम्भव है । दुर्भाग्य से कांग्रेस ने जनता के पास पही मार्ग में पहुँचने के प्रश्न पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। हम