पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१११

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(८४ ) कुछ व्यक्तियों को छोड़कर-- राष्ट्रीय आन्दोलन से पृथक रहा है और जैसे जैसे वर्ग-संघर्ष बढ़ेगा वे अधिकाधिक विरोधी पक्ष की ओर चलते जागेंगे। यह साफ दिखाई दे रहा है कि भविष्य में स्वातंत्र्य- अान्दोलन को चलाने का मुख्य भार श्रमिकों कृषकों और निम्न- मध्यवर्ग के कन्धों पर पड़ेगा ! देश की शक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों पर गहरा दृष्टिपात करने से पता लगेगा कि कांग्रेस का वर्तमान कार्यक्रम कितना अपूर्ण है । यथार्थ में उसमें ग्रामृन्न परिवर्तन करने की अत्यन्त आवश्यकता है । हमें चीन की राष्ट्रीय संस्था कोमिन्तांग के पूर्व इतिहास से शिक्षा लेनी चाहिये । अपने १६.२४ के पुनर्गठन सम्मेलन में उसने कृपकों और श्रमिकों की अोर भविष्य में विशेष ध्यान देने का निर्णय किया था । बह निर्णय शीघ्र ही कार्य-रूप में परिणत किया गया और श्रमिको और कृषकों के हितों की देखभाल के लिए विशेष विभाग खोले गये। प्रत्येक ग्राम और जनपद में पकों के गंध बनाये गये और बड़े भूमिपनियों और बौहगे को उनकी सदस्यता से बिलकुल अलग राया गया। इन मंत्रों के द्वारा भूमिपतियो के आर्थिक और राजनैतिक प्रगन्य के विरुद्ध कृपको के आन्दोलन को संगठित किया गया। वह अान्दोलन अाग के समान फैल गया और केवल तीन साल में एक अकेले प्रान्त में सदस्य संख्या लाखों तक पहुँच गई। चीनी मजदूर भी ट्रेडयूनियनों के रूप में गगठिन किये गये और उनके भीतर जो कार्य किया गया उसके फलस्वरूप वे शीघ्र ही एक बड़ी राजनैतिक शक्ति बन गये। यह कुमिन्तांग के इम नये कार्यक्रम का ही फल था कि १६२६- २७ की क्रान्ति में उसे ऐसी कमाल की सफलता मिली। यदि उसका नेतृत्व पलटकर क्रान्नि विरोधी न हो गया होता तो चीन अाज एक