पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/११४

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को उपासिका इन्टरनेशनल को भी शान्तिकारी करने के लिए वाध्य होना पड़ा है। लीग श्राफ नेशन्स सहसा शान्ति का साधन बन गई हैं। मैं लीग में सम्मिलित होने के लिए रूम को दोप नहीं देता और न मैं उसे सामाज्यवादी राष्ट्रों से अनाक्रमण संधियां और परस्पर महायता के समझौते करने के लिए बुरा कहता हूँ । मेरा विचार है कि कुटनीनिक यावश्यकताग्री के कारण रूम का यह सब करना ठीक है । परन्तु जो बात मग गमझ में नहीं पाती वह है तृतीय इण्टर- नेशनल का रूम के स्थानक में बध जाना। क्या इसे रूसी माम्बवादियों के अनुचित प्रभुत्व से अपने को मुक्त नहीं करना चाहिये। म की गृहनीति मे अप्रभावित होकर वह अपने लिए स्वतंत्र रूप से क्यों न साँचे और क्यों न ऊपर से अादेश देना बन्द करके अपनी राष्ट्रीय शाग्वानों को अपने अपने यहाँ की परिस्थितियों के उपयुक्त राजनीतिक कौशल और तरीके बरतने की स्वतन्त्रता दे ? अाज तो हम देखते हैं कि वहाँ स्वतंत्र रूप से सोचने को प्रोत्साहन नहीं मिलता और सभी जगहों के साम्यवादी रूसी हथकण्डों को यन्त्रवत् अपने यहाँ काम में लाते रहते है । सन् १६२८ में साम्यवादियों को मध्यवर्गीय संस्था में छोड़ देने का जो आदेश दिया गया था । वह अलग रहने की व्यापक नीति का एक भाग था । मैं जानता हूँ कि चीन के अनुभव ने उन्हें सतर्क बना दिया है परन्तु यदि चीन में कान्ति असफल रही तो उसका कारण यही था कि जो तरीके उन्हें बताये गये थे उनमें हेर फेर करने की सुविधा नहीं थी। कुमिन्टॉग में प्रारम्भिक प्रवेश गलत नहीं था । चीन की साम्यवादी पार्टी ही सबसे पहिले यह मान लेगी कि यदि उसका राष्ट्रीय अांदोलन से निकट सम्पर्क न होता तो उस आन्दोलन को प्रभावित करने की विस्तृत सम्भावनायें उसे न मिलतीं और यदि वह प्रारम्भ से ही अलग रहने