पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/११३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जा सकता है। वह जन-अान्दोलन का वृहद अखाड़ा है जहाँ कृपक और मजदूर राजनैतिक शिक्षा प्राप्त कर सकन है और अपने प्रभाव और प्रतिष्ठा को बढ़ा सकते हैं। दुर्भाग्य से कछ श्रमिकवर्ग के नेता इस दृष्टिकोण में महमत नही हैं । उन्होंने १६२८ म अलग रहने की नीति अपनाई है और इस अान्मघानक नीति के फल-स्वरूप व श्रमिक समुदाय में ही नहीं राष्ट्रीय संघर्ष से भी अलग रह गये है। परन्तु अाश्चयों का आश्चर्य यह है कि वे फिर भी भारतीय क्रान्ति के अग्रभाग में होने का दावा करते हैं । जब कभी कांग्रेस ने साम्नाज्यवाद विरोधी संघर्ष छेड़ा है इन नेताओं ने केवल अपने आपको ही उसे दूर नहीं रक्खा बल्कि श्रमिकों को भी उमम भाग लेने से रोका है । बम्बई में राष्ट्रीय ध्वजा को गिराकर अनजान ही मामाज्यवाद के गुर्गे का काम करने वाला क्या एक कम्यूनिष्ट नेता ही नहीं था ? पिछले छ वो से गाम्यवादी विध्यमान्मक कार्य ही करते रह है। ट्रेडयूनियनों के क्षेत्र में भी उन्होंने प्रतिद्विन्दी यूनियनें बनाकर श्रमिकों की एकना को नष्ट करने का प्रयास किया है। परन्तु मैं पुरानी बातों को उग्वाड़ना नहीं चाहता क्योंकि मौभाग्य से अभी हाल ट्रेडयूनियन एकता स्थापित हो गई है यद्यपि इन एकता के अधिक दिन नक चलने में मन्देह है । क्योंकि मेरा विश्वास है कि ट्रेडयूनियन एकना के और मंयुक्त मोर्चे के ये नारे फासिज्म की बढ़ती हुई विभीपिका से लड़ने और युद्ध होने की अवस्था में मावियन सस के पक्ष में मंगार के श्रमिकों की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए लगाये हैं। तृतीय इन्टरनेशनल अाजकल जो नीतियाँ निर्धारित करती है वे रूस की गृहनीति का विस्तार-मात्र प्रतीत होती हैं | रूस युद्ध को टालने के लिए उत्सुक है और उसकी अान्तरिक स्थिति को देखकर विश्वकालि