पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१७५

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(१४८ ) की महत्ता प्रदान करके उस पर सामाज्यवादी पार्टी को श्राधारित करना और यदि समाजवादी पार्टी इस प्रकार की मिलावट और विशृखलता को स्वीकार न करे तो उसे एकता विरोधी बताकर बदनाम करना उचित नहीं है। यह सुझाया गया है हमारी पंक्तियों में वर्ग-चेतनायुक्त श्रमिकों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिये और पार्टी को अधिकाधिक श्रमिक- वर्गीय बनाया जाना चाहिये । परन्तु यह प्रक्रिया कृत्रिम ढंगों से गतिशील नहीं बनाई जा सकती स्वाभाविक रूप से ही उसकी वृद्धि होनी चाहिये । जैसे जैसे समाजादी पार्टी की जड़ें श्रमिक आन्दोलन में गहरी चलनी जागेंगी और जैसे जैसे उस आन्दोलन का स्वरूप उच्चतर होता जायगा, नैस तैसे श्रमिक-तत्वों की संख्या पार्टी में बढ़ती जायगी । पार्टी को श्रमिक-वर्गीय बनाने का तात्पर्य यह नहीं है कि उसमें इक्का-तॉगा यूनियन, कुली यूनियन, भङ्गी यूनियन, इत्यादि के सदस्यों की भरमार कर दी जाय । इस प्रकार की भर्ती से पार्टी का स्वरूप नष्ट हो जायंगा। वह फिर राष्ट्रीय संघर्ष का नेतृत्व करने का दम रखने वाली फौलादी क्रांति- कारियों की पार्टी न रहहेगी। यह बिना कहे ही स्पष्ट है कि पार्टी को अपनी पंक्तियों में चेतनायुक्त श्रमिकों को अधिकाधिक संख्या में लाने का प्रयत्न करना चाहिए। यह पूछने योग्य बात है कि क्या बीस वर्षों के अपने अस्तित्व के उपरान्त भी साम्यवादी पार्टी अपने को बौद्धिकों के प्रभुत्व से मुक्त कर सकी है | क्या उसके भीतर श्रमिकों की बहुसंख्या हो गई है ? फिर, जिस रूपान्तर को साम्यवादी पार्टी अपने बीस वर्षों के अस्तित्व में भी नहीं कर पाई, उसे यदि हम चार वर्षों में कर चुकने में असफल रहे तो इसमें शर्म की कोई बात नहीं है ।