पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१७६

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साम्यवादी, एकता के ऊपर जो जोर देते हैं, उसके परिणाम स्वरूप देश की बढ़ती हुई संयुक्त मोर्चा मनोवृत्ति निर्बल ही होती है। उनके तक से उन शङ्कायों और सन्देहों की पुष्टि होती है जो उनके प्रति उन लोगों में भी बने हुए हैं, जो किसी न किसी रूप में एक संयुक्त मोर्चा बनाये रखना चाहते हैं ।*

  • काँग्रेस समाजवादी साप्ताहिक (Congress Socialist

Weekly) अप्रैल १६३८ ।