पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१८३

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( १५६ ) है । इस कारण से उनकी सम्मति में गान्धीवाद बुर्जुश्रा सिद्धान्तबाद का दक्षिण पक्ष है और 'वाम' सुधारवाद उसका वामपक्ष । इसी कारण से उन्होंने एक बार काँग्रेस-समाजवादी पार्टी को "समाज- वादी चोले में वामपक्षीय चाल" कहा था। कॉग्स के विषय में यह धारणा होने के कारण उन्होंने स्वभावतः अपना एक स्वतन्त्र मन्त्र और एक ऐसा स्वतन्त्र सङ्गटन बनाने का प्रयास किया जो संयुक्त सामाज्यवाद विरोधी मोर्चे का मूर्तरूप हो। उस स्वतन्त्र संस्था को कॉग्रेस के विरोध में खड़ा होना था। उसे निरन्तर राष्ट्रीय सुधार- वादी समूहों और संस्थानों की आलोचना करके उसका असली रूप जनता के सामने रखना था । याम्यवादियों को चाहिये कि वे राष्ट्रीय सुधारवादी संस्था (अर्थात काँग्रेस) और उसके नेताओं को श्रमिक जनसमुदाय में विलग करने का प्रयास करें। किसानों में फैले हुए काँग्रेमी प्रभाव से लोहा लेने के लिए किसान-सभात्रों की रचना करें। संयुक्त मोर्चे के हथकण्डे, जनसमुदाय को आर्थिक और राजनैतिक संघर्ष के लिए परिचालित करने के लिए, और कॉग्रेम और उसकी शाखाओं के प्रभाव से जनता को मुक्त करने के लिए सबसे श्रेष्ठ और प्रभावोत्पादक बनाये गये ।” काँग्रेस में सम्मिलित होना भी अनिष्ट समझा गया क्योंकि उससे एक गैर-कानूनी संस्था को, सच्चे क्रांतिकारी कांग्रेसी तत्वों को बुर्जुया नेतृत्व में दूर ले जाने और एक युद्ध मोर्चा बनाने के लिए, कानूनी सम्भावनाये मिल रही थीं। यह ठीक है कि सातवीं विश्व काँग्रेस ने साम्यवादी इण्टर- नेशनल के तरीकों में परिवर्तन किया और संयुक्त मोर्चे के हथकण्डों को एक नये ढङ्ग से प्रयुक्त करने का निर्णय किया। यह इम परिवर्तन का ही परिणाम था कि ब्रिटिश साम्यवादी पार्टी के