पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१९३

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नहीं रहे हैं । अपने प्रधान काल में युद्ध-विषय पर व ब्रिटिश सरकार म बातचीन चलाने क पत में थे । यात्र न कहते हैं कि मविधान मभा का अाह्वान मना हस्तगत करने के उपगन्न ही हो परन्तु वे अपने पर पारवर्ड ब्लॉक में ६ सितम्बर को छपे वर्धा म मार्ग-दर्शन शीर्षक अपने लेग्व को भूल गये प्रतीत होते हैं। उसमें उन्होंने कहा है कि कांग्रेस को सरकार के सम्मुख राष्ट्रीय मांग का जाग से प्रतिपादन करना चाहिय और उसकी तत्काल प्रति के लिए अड़ जाना चाहिये । उसी लेव में उन्होंने यह भी कहा है कि वर्धा म इम ममय विचार-विमर्श करने वाले हमारे नमानों की उसम नीमर भी कम नहीं मांगना चाहिये जो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है । यदि उन्ह मन्धि-वार्ता के लिए प्रामान्त्रित किया जाता है ना उन्ह वह वार्ता अपने गौरव के अनुकल करना चाहिये । एक वर्ष पहले जलपाईगुरी में माल्दा प्रादेशिक और बगाल प्रालीय कान्फ मों के अवसर पर सुभाषबाबू ने एक प्रम्नाव बनाया था जिसमें सरकार द्वारा कांग्रेस की मांग स्वीकृत किये जाने की एक सम्भावना व्यक्त की गई थी मा होने पर विधान निर्माण के लिए मंविधान सभा बुलाने और उस विधान को ब्रिटेन और भारत के बांच मैत्री सन्धि के अन्तर्गत मूर्त रूप देने की कल्पना की गई थी। यह कार्य उनका सम्मति में संघर्ष के विना ही सम्पादित हो सकता था । फिर अब कैसे गान्धीजी को वायसराय म मिलने और बात- चीत करने के लिए दोष देन है। हॉ तो यह कहा जाता है कि ऐसी बाते साधारण वामपक्षियों को अच्छी लगती हैं । उनकी राजनैतिक शिक्षा नारों तक ही सीमित है। व राजनीति में अधकचरे हैं । अतः वे नादान दोस्तों की तरह