पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२०५

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( १७८ ) और जार ने जर्मनी का दीर्घकाल से उत्पादन किया था और उसे सामन्तशाही विकेन्द्रण (decentralisation) की दशा में रक्खा था। जैसे ही युद्ध फांस की लूट के रूप में परिणत हुना (एलसेस और लोरेन के हथिया लेने से), तैसे ही मार्क्स और एन्जिल्स ने साथ साथ निश्चयात्मक रूप से जर्मनों की निन्दा की। सन् १८७०-७१ के युद्ध के प्रारम्भ में भी मार्स और एन्जिल्स ने बेबिल, और लबिनैक्ट के सामरिक स्वाधिकरणों (militer's appropriation) के पक्ष में वोट देने से इन्कार करने को पसन्द किया, और उन्होंने सामाजिक प्रजातन्त्रवादियों को राय दी कि वे धनिक वर्ग के साथ सम्मिलित न हों, बल्कि श्रमिकवर्ग के पृथक स्वतन्त्र हितों की रक्षा करें। फांस-प्रशिया युद्ध का दृष्टान्त और स्वरूप वर्तमान सामाज्यवादी युद्ध पर घटाना इतिहास का उपहास करना है । वह युद्ध प्रगतिशील बुर्जुश्रा प्रकार का था और राष्ट्रीय स्वाधीनता के लिए लड़ा गया था । "यह बात सन् १८५४-५५ के युद्ध और उन्नीसवीं शताब्दी के अन्य सब युद्धों के बारे में और भी अधिक सत्य हैं। यह शताब्दी वह समय था जब अाधुनिक साम्राज्यवाद नहीं था, समाजवाद के लिए परिपक्व वस्तुस्थिति नहीं थी, युद्धरत देशों में कोई विशाल समाजवादी पार्टियां नहीं थीं, अर्थात जब उन अवस्थात्रों का लेशमात्र भी कहीं नहीं था, जिनके आधार पर वेसिल नीति- घोषणा-पत्र (Baslu • anife to) ने श्रमिक क्रान्ति के वे हथकंडे तैयार किए थे जो बड़े राष्ट्रों में युद्ध छिड़ने की अवस्था में काम में लाये जा सके। जो कोई वर्तमानकाल में मार्क्स के युद्धों के प्रति उस समय के रवैये का उदाहरण देता है जब धनिकवर्ग प्रगतिशील था, और मार्क्स और एन्जिल्स के "श्रमिकों की कोई पित्तृभूमि नहीं