पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२११

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वास्तव में देखा जाय तो क्या पोलैंड एक अद्ध फासिस्ट राज्य नहीं था जिसकी अक्षुण्य मुरज्ञा का इगलेंड और फ्रांस ने बचन दिया था और जिसकी ग्यातिर ये युद्ध में प्रत हुए थे । और लीजिये, क्या यूनान जनतन्त्रों का माथी नहीं है-यूनान जिस पर उन जनरल मेटेक रस का शासन था जिसने सन् १९३६ में पानी तानाशाही स्थापित की और जो नन् १९३८ में जीवनभर के लिए प्रधानमंत्री बन बै? यह कहना ठीक नहीं है कि जनतन्त्रीय राज्य फामिस्ट राज्यों से घृणा करते थे और उनके प्रति ग्रस्तुश्च वहिष्कृतों का सा व्यवहार करते थे। इसके विपरीत उन्होंने उन्हें मनाया, उनकी चापलूनी की और उन्हें अपनी ओर मिलाने की कोशिश की जैसा हांकों के स्पेन के साथ किया गया) परन्तु हिटलर की सफलतायें उन्हें दूसरी ओर खींच ले गई। इस तथ्य का भी खूब लाभ उठाया जाता है कि इ गलैंड सोवि. यत रूस की अोर है और इस प्राधार पर यह कहा ज ता है कि अब युद्ध को सामाज्यवादी वनाना सम्भव नहीं है। यह युक्ति उतनी ही अच्छी अथवा बुरी है जितनी बह युक्ति । क्योंकि इम युद्ध में कोवियन रूम सामाज्यवादी इ गलैंड की अोर है अतः इसको प्रमिक जनता का युद्ध क इ कर पुकारना असम्भव है । वर्तमान युद्ध किसी भी प्रकार से जनता का युद्ध नहीं समझा जा सकता । मुख्य रूप से वह सामाज्यवादी ही बना हुआ है । यदि कोई युद्ध पराधीन जाति के द्वारा विदेशी शासकों के विरुद्ध अपनी मुक्ति के लिए लड़ा जाय, अथवा चदि जनता धनं क वर्ग और अपनी राष्ट्रीय सरकार के विरुद्ध विद्रोह करे और इस नारे के अनुसार श्राचरण करे कि “सामाज्यवादी युद्ध को घरेलू युद्ध में परिणित कर दो,” तो हम उसे जनता का युद्ध कहेगे। परन्तु जहां राज्य